जिले के 12 हजार परिवार कर रहे 27 प्रजाति के लघु वनोपजों का संग्रहण, बना अतिरिक्त आय का जरिया

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धमतरी| मानव जीवन में वन की उपस्थिति बेहद महत्वपूर्ण है। वन न सिर्फ पर्यावरण एवं जलवायु का संतुलन निर्धारण करता है, बल्कि प्राकृतिक पेड़-पौधों को सुरक्षित रखता है। वन क्षेत्र में आयुर्वेद एवं चिकित्सा के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाली बहुमूल्य जड़ी-बूटियां, फूल-फल, पत्ते, छाल आदि का संग्रहण किया जाता है, जो आज वन क्षेत्र में निवासरत परिवारों की आय का बड़ा जरिया बन चुका है। वहीं शासन द्वारा समर्थन मूल्य पर इसकी खरीदी किए जाने से लघु वनोपजों के संग्रहणकर्ताओं को काफी लाभ मिल रहा है।
जिले का लगभग 52 प्रतिशत क्षेत्र वनाच्छादित है, जो काफी बड़ा रकबा है। लघु वनोपजों एवं वनोत्पादों के संग्रहण के लिए वन विभाग द्वारा जिले में 26 वनोपज सहकारी समितियां गठित की गई हैं, जहां पर इन वनोत्पादों का संग्रहण किया जाता है। वन मण्डलाधिकारी एवं प्रबंध संचालक जिला वनोपज सहकारी यूनियन मर्यादित अमिताभ बाजपेयी ने बताया कि जिला वनोपज सहकारी समितियों के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 24 प्रजाति के वनोपज खरीदे जाते हैं , जिसमें कालमेघ, पुवाड़ बीज, आंवला बीज, हर्रा-कचरिया, हर्रा, बहेड़ा-कचरिया, बहेड़ा, शहद, वन तुलसी, वन जीरा, शतावर सूखा, नागरमोथा, कुसुमी लाख, गिलोय, धवई फूल, महुआ फूल, भेलवा, माहुल पत्ता, बेल गुदा, चिरौंजी गुठली, साल बीज, महुआ बीज, कुसुम बीज क्रय किए जाते हैं। इसके अलावा संघ द्वारा निर्धारित दर पर इंद्रौज, कुटज छाल और आंवला फल क्रय किए जाते हैं। उन्होंने बताया कि लघु वनोपज क्रय करने के लिए 22 हजार 280 क्विंटल का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जिसके संग्रहण के लिए 657.85 लाख व्यय होगा जो वन क्षेत्र में निवासरत वनवासियों की अतिरिक्त आय के रूप में मिलेगा।

वन मण्डलाधिकारी एवं प्रबंध संचालक ने बताया कि जिले के लगभग 12 हजार 300 परिवारों के द्वारा लघु वनोपज का संग्रहण किया जाता है तथा इस कार्य के लिए 273 स्वसहायता समूह गठित किए गए हैं, जिनसे जुड़े 3129 लोगों को वनोपज क्रय का दो प्रतिशत कमीशन दिया जाएगा। यह राशि लगभग 13.15 लाख रूपए होगा। वनोपज को विक्रय करने से पहले प्राथमिक रूप से साफ-सफाई करना, धूल-मिट्टी हटाना, सूखाना आदि कार्यों में लगे 50 लाख स्वसहायता समूहों को प्रारम्भिक प्रसंस्करण के लिए छह लाख आठ हजार रूपए की आय प्राप्त होगी। उन्होंने बताया कि लघु वनोपज संग्रहण का न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना का सर्वाधिक लाभ संग्राहकों को वनोपज का अधिक मूल्य दिलाना तथा प्रसंस्करण के माध्यम से रोजगार का अतिरिक्त साधन उपलब्ध कराना है। साथ ही वनों में अतिक्रमण की प्रवृत्ति को रोककर विनाशविहीन विदोहन करना है जिससे लोगों में वन संसाधन के प्रति जागरूकता, सजगता और संरक्षण की भावना विकसित करना है।