माताओं  ने अपने पुत्र की  लम्बी आयु के लिए रखा कमरछठ व्रत

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भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा कर कमरछठ की कहानी भी सुनी

धमतरी| रविवार को कमरछठ  का  पर्व धूमधाम  से मनाया  गया |  माताओं  ने  अपने पुत्र की  लम्बी आयु  और परिवार  की सुख  शांति के  लिए  दिन भर  निर्जला  उपवास रखा|  षष्ठी माता की पूजा अर्चना के  बाद  माताओं  ने  अपना व्रत  तोडा | कमरछठ पर शहर के शिवालयों में  पूजा करने महिलाओं की भीड़ लगी रही। सुबह से निर्जला व्रत कर महिलाओं ने दोपहर को भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा कर कमरछठ की कहानी भी सुनी। इस अवसर पर माताओं ने सगरी (कुंड) बनाकर उसे सजाया भी और उसमें मिट्टी की नाव बनाकर भी छोड़ी।  छत्तीसगढ़  में  भादो के कृष्ण पक्ष की छठी तिथि पर षष्ठी पर्व मनाने की परंपरा है। इस पर्व को गांव-गांव में कमरछठ के नाम से जाना जाता है।  षष्ठी माता की पूजा करके परिवार की खुशहाली और संतान की लंबी उम्र एवं सुख-समृद्धि की कामना की गई ।

सुबह से निर्जला व्रत कर महिलाओं ने दोपहर को भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा कर कमरछठ की कहानी भी सुनी।  शाम को सूर्य डूबने के बाद पसहर चावल और छह तरह की भाजी व दही खाकर अपना व्रत तोड़ा। पूजा से लौटने के बाद माताओं ने अपने बच्चों की पीठ पर पीली पोती मारकर उनके दीर्घायु की कामना की।नगर के शिव मंदिरों सहित देवी मंदिरों में कमरछठ की सामूहिक पूजा के लिए महिलाओं की भीड़ लगी रही। पूजा-अर्चना में बिना हल जोते उगने वाले पसहर चावल और छह प्रकार की भाजियों का भोग लगाने का खासा महत्व है। पसहर चावल को खेतों में उगाया नहीं जाता। यह चावल बिना हल जोते अपने आप खेतों की मेड़, तालाब, पोखर या अन्य जगहों पर उगता है। भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ के जन्मोत्सव वाले दिन हलषष्ठी मनाए जाने के कारण बलदाऊ के शस्त्र हल को महत्व देने के लिए बिना हल चलाए उगने वाले पसहर चावल का पूजा में इस्तेमाल किया जाता है। पूजा के दौरान महिलाएं पसहर चावल को पकाकर भोग लगाती हैं, साथ ही इसी चावल का सेवन करके व्रत तोड़ती हैं।