
जहां माता-पिता का सम्मान होता वहां भगवान का वास होता है- सुमित्रा श्री जी म. सा.
परिवार की खुशहाली पर पार्श्वनाथ जिनालय में साध्वियों ने दिया प्रवचन
धमतरी | चातुर्मास के तहत इतवारी बाजार स्थित पार्श्वनाथ जिनालय में प्रवचन जारी है। जिसके तहत आज परिवार की खुशहाली पर साध्वियों ने प्रवचन दिया। प. पू. मधु स्मिता श्री जी म. सा. ने कहा कि परिवार में खुशहाली लाने के लिए पांच बातों का चिंतन करे। पहला कोऑपरेशन परिवार के सभी सदस्यों में सहयोग की भावना मन वचन काया से हो तो जीवन का स्तर ऊंचा उठता है। सुख में दूसरों को साथी बनाए। दूसरों के दुख में सहयोगी बने। परिवार के प्रति सहयोग की भावना हो तो खुशहाली आती है। जिसके पास सब कुछ होता है वह श्रीमंत कहलाता है लेकिन जो दूसरों के सहयोग के लिए तत्पर रहता है, दुखों को कम करने का काम करता है वह महान बनता है। दूसरा कलेक्शन ,पैसो के संग्रह के साथ-साथ गुण व ज्ञान का संग्रह भी जरुरी है। हम पैसो के संग्रह के चक्कर में परिवार को समय नहीं दे पाते। जिससे परिवार टूटने के कगार पर आ जाता है। गुणों के साथ पैसों का संग्रह हो तो वह सात्विक बनेगा। बच्चों को पैसे व सुविधाएं सब कुछ दिया, लेकिन संस्कार नहीं दिये जाये तो सब शून्य है। तीसरा कंफेशन,अपने द्वारा किये गये गलतियों को स्वीकार करना जरुरी है। सभी में भूलों के स्वीकार की हिम्मत नहीं होती अहम के कारण भी हम स्वीकार नहीं करते। प्रतिक्रमण इसीलिए होता कि भूलों का पश्चताप करें। हम भूल या गलती छुपाने कई झुठ बोलते है फिर उस झूठ को छुपाने कई और झुठ बोलते और पाप के भागी बनते है। चौथा करेक्शन, गलतियों को सुधारना जरुरी है। इस दिशा में आगे बढ़े तो जीवन में सुधार की स्थिति आएगी। संस्कार के आभाव में परिवार टूटने के कगार पर होता है, माता-पिता, बड़ो का पैर छुए उनका सम्मान करें। पांचवां कनेक्शन,संबंध जोडऩे से दुरियां कम होगी।
परिवार स्वर्ग बन जाएगा। कभी भी बच्चों में भेद करते हुए उन्हें नीचा नहीं दिखाना चाहिए। स्पर्धा की भावना जगाए लेकिन ऐसे नहीं कि बच्चों में ईष्या के भाव आए, उन्हें प्रोत्साहित करें। पति-पत्नि में संबंध बेहतर बनाये रखने के लिए ट्रस्ट, टाईम, टॉक व टच अर्थात विश्वास, समय, संवाद, स्पर्श होना जरुरी है। इससे दाम्पत्य जीवन खुशहाल होता है। प. पू. सुमित्रा श्री जी म. सा. ने कहा कि परिवार की खुशहाली का राज कठिन है लेकिन हमारे आचार्य भगन्वतों ने इसे काफी सहज बनाया है। घर एक मंदिर होता है जिस प्रकार मंदिर में शांति होती है। उसी प्रकार घर में शांति जरुरी है। घर के बड़े स्तंभो जैसे माता-पिता बड़ो का सम्मान करें। वे भगवान के भांति ही होते है। जहां बड़ो को सम्मान होता वहां भगवान का वास होता है। प्रेम आत्मा को आत्मा से जीव को जीव से जोड़कर रखता है। प्रेम से टुटे हुए दिलो को व बिखरे हुए को जोड़ा जा सकता है। प्रेम सारे दोषो को अपने अंदर समा लेता है। परिवार में भूलो को भूलकर प्रेम जोडऩे का कार्य करता है। पांच बातो आधार की अभिव्यक्ति, छोडऩे की प्रवृत्ति, सहन करने की शक्ति, उपकार की प्रवृत्ति व आत्मीयता का भाव पर ध्यान दे तो परिवार में खुशहाली आती है। प्रवचन के दौरान जैन जागृति महिला मंडल व मणिधारी धारी मित्र मंडल द्वारा परिवार की खुशहाली से संबंधित गीत की प्रस्तुति दी गई। प्रवचन का श्रवण करने बड़ी संख्या में जैन समाजजन उपस्थित रहे।