शहर समेत ग्रामीण अंचल में देवउठनी पर्व की धूम , घर-घर बने मीठे पकवान, बच्चों ने फोड़े पटाखे

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धमतरी | शहर समेत ग्रामीण अंचल में देवउठनी पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है| गावों में पर्व को लेकर भारी उत्साह देखा जा रहा है| अलसुबह महिलाओं ने घर-आँगन की लिपाई कर आकर्षक रंगोली बनाई | शाम को गन्ने का मंडप सजाकर भगवान विष्णु के स्वरूप शालीग्राम का देवी तुलसी से विवाह रचाया| पर्व को लेकर बाजार में काफी चहल-पहल रही| रुद्री चौक, गोकुलपुर,  रामबाग-  इतवारी बाजार, गोलबाजार, सिहावा चौक में गन्ने की कई खेप पहुंची थी| गन्ना 50 रुपए से लेकर 100 रुपए तक जोड़ी में बिका| इसी तरह केला, सेब फल की भी खूब डिमांड रही| देवउठनी पर्व पर आज सुबह मंदिरों में भी भक्तों की भीड़ रही| भक्तों ने पूजा-अर्चना कर अपने परिवार की सुख -शान्ति की कामना की |

हिन्दी पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी  मनाई जाती है। 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है|  देवउठनी पर्व के बारे में कई किवदंती है | इस दिन से भगवान विष्णु योग निद्रा से बाहर आते हैं और सृष्टि के पालनहार का दायित्व संभालते हैं। इस दिन भगवान विष्णु का शयनकाल समाप्त होता है। प्रबोधिनी एकादशी को देवउठनी, एकादशी और देवुत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन से विवाह, गृह प्रवेश तथा अन्य सभी प्रकार के मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते हैं। माना जाता है कि भगवान श्रीविष्णु ने भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को महापराक्रमी शंखासुर नामक राक्षस को लम्बे युद्ध के बाद समाप्त किया था और थकावट दूर करने के लिए क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर सो गए थे और चार मास पश्चात फिर जब वे उठे तो वह दिन देव उठनी एकादशी कहलायी। इस दिन भगवान श्रीविष्णु का सपत्नीक आह्वान कर विधि विधान से पूजन  किया  जाता  है ।

इस दिन उपवास करने का विशेष महत्व है | एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति सुख तथा वैभव प्राप्त करता है और उसके पाप नष्ट हो जाते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु के स्वरूप शालीग्राम का देवी तुलसी से विवाह होने की परंपरा भी है| पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता तुलसी ने भगवान विष्णु को नाराज होकर श्राप दे दिया था कि तुम काला पत्थर बन जाओगे| इसी श्राप की मुक्ति के लिए भगवान ने शालीग्राम पत्थर के रूप में अवतार लिया और तुलसी से विवाह कर लिया| वहीं तुलसी को माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है|

देवउठनी पर्व को लेकर लोगों में अपार उत्साह है | लोगों ने सबसे पहले घर आँगन की लिपाई पुताई की |आँगन में सुन्दर रंगोली बनाई गई | फिर आँगन में गन्ने का मंडप बनाया गया| मंडप को आकर्षक ढंग से सजाया गया| शाम को मंडप में भगवान शालीग्राम और देवी तुलसी को विराजमान कर दोनों का विवाह रचाया गया |इस उत्सव को लेकर बच्चों में ज्यादा उत्साह था| आज प्रत्येक घर की रसोई मीठे पकवान की खुशबू से महक रही थी| भगवान को  भोग  लगाने घर में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाये गये | शाम को बच्चों ने खूब पटाखे भी जलाये| गांवों में पशुधन को राउत द्वारा सोहई बाँधने का सिलसिला देर रात तक चलते रहा | यदुवंशियों ने एक से बढ़कर दोहे गाकर इस पर्व को यादगार बनाया | पशुधन मालिकों ने यदुवंशियों को उपहार स्वरूप कपड़े, पैसे भी दिए | रामबाग के पास गन्ना बेच रहे दूजराम साहू ने बताया कि वे ग्राम  रक्सा ( राजिम ) से गन्ना बेचने आये है | वे अलसुबह ही पिकअप से गन्ना लेकर पहुँच गए | इस पर्व में गन्ना की पूजा की जाती है जिससे उसकी डिमांड बढ़ जाती है |उसके पास गन्ना 50 रुपए से 70  रुपए तक जोड़ी बिक रहा है |