नया कृषि अध्यादेश फिर से ले जाएगा गुलामी की ओर, ईस्ट इंडिया कम्पनी का दूसरा स्वरूप होगा कांट्रेक्ट खेती: आनंद पवार

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किसानों की जमीन पर नियंत्रण कॉरपोरेट कम्पनियों का हो जाएगा
सुनवाई के लिए कोर्ट तक नहीं जा पायेगा किसान, अनुविभागीय अधिकारी सक्षम प्राविहित अधिकारी होंगे, जमाखोरी को पूर्ण मान्यता मिल जाएगी
धमतरी | केंद्र सरकार द्वारा लाया गया तीन कृषि अध्य्यादेश देश को फ़िर से गुलामी की ओर ले जा सकता है| सनद रहे कि ऐसे ही पश्चिम से कुछ कंपनियों ने समूह बनाकर पहले धीरे-धीरे भारतीय बाजार में अपनी पैठ बनाई औऱ फ़िर बंदरगाहों,  बड़े  कारखानो को खरीदते  हुए अपने ऊपर निर्भरता ऐसे बधाई कि तत्कालीन  राज्यों, राजवाडों को जब तक समझ आता, तब तक वे लूट चुके होते, या नियन्त्रण उनके हाथों से चला जाता। आज तीनो कृषि अध्य्यादेश कृषक,  व्यापार  एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक2020, मूल्य उत्पाद एवं कृषि सेवाओँ पर किसान (सशक्तिकरण एवं सरक्षण)अनुबंध 2020 , आवश्यक वस्तु(संशोधन) विधेयक 2020
उक्त तीनों विधेयकों के पास होने के बाद अंदाजा लगाइए कि पंजीकृत मंडी समितियाँ जो राज्य सरकारों के अधीन मंडी बोर्डो के माध्यम से MSP न्यूनतम समर्थन मूल्य की निगरानी कर अपने लायसेंसी एजेंटों आढ़तियों के माध्यम से किसानों  की उपज़ को खरीदने वयापरियो को प्रेरित करते हैं, क्योकि ये एजेंट सरकार से लाइसेंस प्राप्त होते हैं |

मंडी के अधीन होते हैं, जहाँ समस्त वयापारी रेज़ा, कुली हमाल, परिवहन ट्रांसपोर्टर सहित सभी आपसी सहकार से किसान हित को देखते  हुए अपनी दीर्घकालिक लाभ भी सुनिश्चित करते हैं| छोटे कम जोत वाले किसान जिसके पास भंडारण परिवहन औऱ ततकाल मजदूरी देने के लिए व्यवस्था  नहीं  होती, तब ये साहकरिक व्यवहार से अपना काम निकाल लेते है। अब केंद्र सरकार सुधार के नाम जानबूझकर कांट्रेक्ट खेती करवा कारपोरेट कम्पनियों के लिए रास्ता खोलकर ईस्ट इंडिया कम्पनी की तर्ज़ पर फ़िर से कंपनियों की गुलामी की ओर देश के किसानों को धकेलना चाह रही है| बिहार में MSP को शिथिल करने मंडी व्यवस्था को बन्द कर दिया गया, जिसका यह असर हुआ कि बिहार के किसानों की उपज़ को औने पौने दामो में खरीदकर बड़ी कम्पनियां औऱ दलाल पँजाब हरियाणा ले जाकर मनमाने मूल्य पर बेचने लगे| इससे बिहार के किसान का लाभ कम्पनी औऱ दलालों की जेब मे तो गया ही बल्कि पंजाब औऱ हरियाणा में जहां किसानों को अच्छा मूल्य मिलता था, वह बहुत नीचे आकर वहाँ के किसानों की माली स्थिति खराब कर गया, जबकि जनरल मार्किट में उपज़ का मूल्य आम जनता को बहुत अधिक देना पड़ा मतलब न ही किसानों को फायदा औऱ न ही उपभोक्ताओं को, बल्कि बीच की बड़ी कम्पनियों औऱ कॉरपोरेट खेती करने वाली कांट्रेक्ट एजेंटों को ही इससे फ़ायदा हुआ । किसानों के खेतों में कांट्रेक्ट खेती करने वाली कम्पनी अनाप शनाप रासायनिक खाद डालती रही औऱ बाद में अग्रीमेंट खत्म होने पर जमीनों को बंज़र छोड़ गए, अब किसान जमीन से भी हाथ धो बैठे।