नई दिल्ली| भारतीय शिपिंग कारोबार में चीन के दबदबे को ध्वस्त करने की दिशा में शिपिंग मिनिस्ट्री ने एक तीन सूत्रीय फ़ैसला लिया है. इस फ़ैसले से एक ओर चीन के जहाज भारतीय कार्गो बाज़ार से बाहर हो जाएंगे दूसरी ओर देशी शिप बिल्डिंग इंडस्ट्री का तेज़ विकास सुनिश्चित होगा. ये फ़ैसला मेक इन इंडिया के अंतर्गत लिया गया एक बड़ा निर्णय है. मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए शिपिंग मिनिस्ट्री ने फ़ैसला लिया है कि अब कोयला और क्रूड ऑयल आदि सभी कार्गो ठेकों को देने में ‘भारत में बने हुए’ शिप को प्राथमिकता दी जाएगी. यानी जो ठेकेदार माल को भारत में बनी शिप से ले जाएगा उसे ठेका देने में वरीयता दी जाएगी. तीन तरह की प्राथमिकताएं निर्धारित की गई हैं. पहले नम्बर को प्रथम वरीयता दी जाएगी. भारत में बनी शिप हो और भारतीय फ़्लैग हो यानी कार्गो कम्पनी भी भारतीय हो. विदेश में बनी शिप हो लेकिन भारतीय कार्गो कम्पनी हो. भारत में बनी शिप हो लेकिन विदेशी कार्गो कम्पनी हो इससे भारतीय शिप बिल्डिंग इंडस्ट्री का तेज़ी से विकास होगा. भारत में शिप बिल्डिंग करने वाले उद्यमियों को सरकार ने 20 फीसदी सब्सिडी देने का भी एलान किया कहै. यानी अगर कोई जहाज़ 200 करोड़ का बनता है तो सरकारी योगदान सब्सिडी के तौर पर 40 करोड़ का होगा यानी जहाज़ मालिक को शिप 160 करोड़ का पड़ेगा. भारत में शिप बिल्डिंग इंडस्ट्री के तेज़ विकास के लिए शिपिंग मंत्रालय ने राईट ऑफ़ रिफ़्यूज़ल (आरओएफ़आर) लाइसेंसिंग में बदलाव किया है. ये बदलाव आत्म निर्भर भारत के अंतर्गत ‘आत्म निर्भर शिपिंग मिशन’ के अंतर्गत किए गए हैं. इससे पहले, आज़ादी से पहले से ही, सिर्फ़ भारतीय कम्पनियों को ठेकों में प्राथमिकता दी जाती थी. लेकिन अब भारत में बने शिप को भी प्रथम वरीयता में शामिल कर लिया गया है. अभी समंदर के कार्गो कारोबार में चीन के साथ, नार्वे, जापान, कोरिया, ताइवान जैसे देशों की बड़ी हिस्सेदारी रही है जिसमे माल को विदेशों से आयात करना या विदेशों को निर्यात करने में विदेश में बने पानी के जहाजों का इस्तेमाल होता रहा है लेकिन अब नई पॉलिसी के तहत सिर्फ ऐसे कारोबारियों को प्राथमिकता मिलेगी जो भारत मे बने शिप का इस्तेमाल करेंगे. सरकार के इस फैसले से समंदर में भारत के बने शिप्स का बोलबाला होगा जो अभी सिर्फ 1 फीसदी है. सरकार का लक्ष्य 3 से 4 फीसदी करने का है. इस फ़ैसले से शिप बिल्डिंग सेक्टर में तेज़ी से रोजगार भी इससे बढ़ने की उम्मीद है. सरकार भारतीय कारोबारियों को शिपिंग इंडस्ट्री से जुड़े हैं इसके लिए 20 फीसदी की सब्सिडी भी दे रही है. यानी अगर कोई जहाज़ 200 करोड़ का बनता है तो सरकारी योगदान सब्सिडी के तौर पर 40 करोड़ का होगा यानी जहाज़ मालिक को शिप 160 करोड़ का पड़ेगा. सरकार लगातार ऐसे फ़ैसले ले रही है जिससे चीन के भारतीय बाज़ारों पर बन रहे दबदबे को कम किया जा सके. सबसे पहले सरकार ने चीन से खिलौना इंपोर्ट पर ड्यूटी बढ़ाई, फिर चीनी खिलौनों के ख़िलाफ़ बंदरगाहों पर लागू होने वाला क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर पास किया, भारतीय बंदरगाहों पर सिर्फ़ मेक इन इंडिया टग बोट को चलाने का फ़ैसला किया और अब मेक इन इंडिया शिप के इस फ़ैसले से चीन को उसके व्यवहार का मुंह तोड़ जवाब मिल सकेगा.