असंत गुणों का त्याग कर संतभाव को हृदय में धारण करें, ऑनलाइन सत्संग से जुड़कर भक्तों ने अपनी जिज्ञासाओं को शांत किया

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धमतरी| संत श्रीराम बालक दास के सानिध्य में ऑनलाइन सत्संग का आयोजन सीता रसोई संचालन ग्रुप में प्रातः 10 से 11 बजे और दोपहर 1 से 2 बजे तक किया गया जिसमें सभी भक्त जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त किये |
सत्संग परिचर्चा में टिकेश्वर कुमार निषाद, करमसेन ने जिज्ञासा रखी कि जीवित संत महापुरुषों की तस्वीर पर हार क्यों पहनाते हैं| इस विषय के महत्व को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि किसी को सम्मान देने का प्रतीक उसे माला पहनाना होता है |प्रायः लोग यह मान लेते हैं कि माला केवल दिवंगत आत्माओं की तस्वीर पर ही पहनाया जाता है परंतु ऐसा नहीं है |फूलों की माला हम किसी के सम्मान में कभी भी अर्पित कर सकते हैं | यदि पुत्र अपने माता-पिता से दूर है और माता पिता की तस्वीर वह अपने घर में श्रद्धा पूर्वक प्रेम भाव से रखता है उन्हें स्मरण करता है और उनके सम्मान में उन्हें पुष्पों की माला अर्पित करता है तो इसमें कोई गलत नहीं |उसी प्रकार जीवित साधु संत एवं गुरु भगवान के तुल्य होते हैं |गुरु का सम्मान तो भगवान से भी ऊपर रखा गया है इसलिए उन्हें फूलों की माला अर्पित की जाती है|
रामफ़ल बकेला ने जिज्ञासा रखी कि माता अपनी विभिन्न स्वरूपों में अस्त्र शस्त्र धारण की होती है| गुरुदेव ने इस जिज्ञासा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि माता के विभिन्न रूप है |उनके हर रूप का दर्शन करना चाहिए | उन रूपों को पूजना चाहिए| माता के हाथों में धारण किए अस्त्र शस्त्र का   महत्व है और सभी में कोई ना कोई भाव, गुण एवं दिव्य रहस्य परोपकारी भाव से छुपा होता है | शूल, त्रिशूल, नाग, डमरु, चक्र, कलश, कटार, तलवार एवं अभय मुद्रा इन सभी के धारण रूप का दर्शन हमें करना चाहिए | कल्याणकारी अभय दायिनी दुष्ट संघार करनी क्लेश नाशनी माता इन्हीं शस्त्र को धारण करके दर्शन देती  है | कटार धारणी रूप में कलेश हरणी, जीवन के कई शूल को हरने वाली है इसीलिए त्रिशूल धारणी, संकट को काटने वाली है इसीलिए कटार तलवार धारणी, मंगल करनी है इसीलिए हाथों में कलश धारण किए होती है| भगवती माता की दो मुद्राएं होती है |एक  वर मुद्रा और दूसरी अभय मुद्रा| वर मुद्रा माता लक्ष्मी की होती है जो कि वर प्रदान मुद्रा होती है| इनका उल्लेख 84 मुद्राओं में मिलता है उनका अलग-अलग समय पर अलग-अलग स्थितियां भी बताई गई है |अभय मुद्रा अर्थात स्वास्थ्य आशीर्वाद प्रदान करने वाली मुद्रा होती है | यह माता के स्वरूप का वर्णन है जहां माता अपने भक्तों को सब कुछ प्रदान करती है और उस सुरक्षा प्रदान करने का दायित्व भी स्वयं ही लेती है और उसे पूर्ण करने में भक्तों की सहायता भी करती है वह होती है अभय मुद्रा | बालमुकुंद साहू शक्तिघाट ने रामचरितमानस की चौपाई झूठही लेना झूठही देना….. के भाव को स्पष्ट करने की विनती बाबाजी से की | रामचरितमानस की यह चौपाई वर्तमान के सापेक्ष लिखी गई चौपाइयां हैं |आज भी यह बहुत अधिक प्रासंगिक है क्योंकि इसमें असंत लोगों के गुणों को गोस्वामी तुलसीदास जी ने वर्णन किया है| असंत व्यक्ति वे होते हैं जो असत्य, झूठ, प्रलाप और स्वार्थ भावों का लोभी रूप प्रकट करते हैं |आप केवल संतों के महत्व को जानिए | उनके गुणों को पहचाने |संत तत्व रूप धारण करिए| मैत्री और सज्जनता के गुणों को अपने जीवन मे लाइए| असंत गुणों का त्याग करके संत भाव को हृदय में धारण करें यही गोस्वामी तुलसीदास जी के भाव रहे हैं| परसवाड़ा से माता ने जिज्ञासा व्यक्त  की कि दशहरे में नीलकंठ के दर्शन का बहुत अधिक महत्व है| बाबाजी ने बताया कि दशहरे में नीलकंठ का दर्शन हमारे हिंदू धर्म में भ्रांतियों का घोतक है, जो कि केवल एक धारणा है | नीलकंठ का दर्शन दशहरे के दिन शुभ होता है परंतु यह केवल लोकोक्ति ही मानकर चलें ऐसा कुछ नहीं है और इस तरह की भ्रांतियां पर कभी विश्वास न करें| गोरेलाल सिन्हा ने मां के प्रति हम सब की भावना कैसी होनी चाहिए  कलयुग में, चाहे सतयुग में मां का महत्व भगवान से ही ऊपर है|  जिस माँ ने हमें अपना रक्त देकर सींचा, कष्ट को सहन करते हुए हमारा लालन-पालन किया |मृत्यु से साक्षात होकर हमें जन्म दिया वह माता अवश्य रूप से ही भगवान से भी श्रेष्ठ है | बाबाजी ने सभी से विनती की कि आप भले ही माता के मंदिरों में दर्शन करने जाएं चाहे ना जाए लेकिन अपनी माता के लिए थोड़ा समय अवश्य निकालें उनकी सेवा सम्भाल करें, उन्हें सम्मान दें|