चंद्रकांत साहू
धमतरी | कुश्ती के क्षेत्र में जय बजरंग अखाड़ा गोकुलपुर आज भी अपने परिचय की मोहताज नहीं है |इस अखाड़ा ने ऐसे कई पहलवान दिए हैं जो राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है | इस अखाड़े में आज भी इस खेल के प्रति जुनून रखने वाले खिलाडी प्रशिक्षण के लिए आते हैं |आज सुबह जब हमने गोकुलपुर व्यायाम शाला का भ्रमण किया तो यहां लड़कों के साथ कुछ लड़कियां भी अपने कोच विजय यादव के मार्गदर्शन में कुश्ती के दांव पेंच सीख रही थीं | इनमें से 2 लड़कियां राष्ट्रीय स्तर तक अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया |
कुश्ती के प्रति आकर्षित होने पर इन महिला पहलवानों ने बताया कि 2016 में प्रदर्शित आमिर खान की फिल्म दंगल देखी जिसमें उसकी दो बेटियां गीता फोगाट और बबीता फोगाट लड़की होकर कुश्ती के रिंग में लड़कों को पटखनी दी। गीता फोगाट ने देश के लिए खेला और अपनी मेहनत के दम पर देश को गोल्ड मेडल दिए तब से उसके मन में इस खेल के प्रति ललक और सम्मान बढ़ा और उसे सीखने के लिए अखाड़े की ओर रुख किया | फिल्म में आमिर खान का यह संवाद हमेशा याद रहा कि ” म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के ” उससे हमें यह प्रेरणा मिली कि पुरुष प्रधान इस समाज में बेटियां भी अपने लगन और मेहनत से हर वह मुकाम हासिल कर सकती है जिसे वह पाना चाहती है|
इन खिलाड़ियों ने बताया कि इस खेल के लिए कभी भी परिवार और समाज ने विरोध नहीं किया। वे दोनों गोकुलपुर वार्ड में रहती है और यह गर्व की बात है कि इस वॉर्ड से कई पहलवान निकले जो राष्ट्रीय स्तर पर शहर और प्रदेश का नाम रोशन किया है। वेदकुमारी के चाचा रामतिलक भी अपने ज़माने में एक शानदार पहलवान रहे हैं |अपने कुशल दाव पेंच की बदौलत कुछ मिनटों में विरोधी खिलाड़ी को चित्त कर देते थे। वेद कुमारी ने बताया कि उनके चाचा हमेशा उन्हें प्रोत्साहित करते रहे | वह गोकुलपुर स्कूल में कक्षा 12वीं में अध्ययनरत है। उनके पिता कृषि उपज मंडी में कार्यरत हैं | उन्होंने बताया कि कुश्ती को लेकर लोगों का नजरिया बदला है | पहले इस खेल में आने से लड़कियां झिझकती थी लेकिन अब वे खुद इस खेल में आगे आ रही है। ओमीन के पिता कृषक है | यहां यह बताना लाजिमी है कि ओमीन की बहन द्रोपदी भी कुश्ती की शानदार खिलाड़ी है| उन्होंने भी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था | ओमीन- वेदकुमारी ने अपने शेड्यूल के बारे में बताया कि वह सुबह जल्दी उठ जाती है |घर का काम-काज निपटाने के बाद 6:30 बजे अखाड़े पहुंच जाती है फिर लगातार 2 घंटे तक कोच के मार्गदर्शन में कुश्ती के दाव-पेंच सीखती है |फिर उसके बाद वह ट्यूशन के लिए निकल जाती है| अभी लॉक डाउन के कारण स्कूल बंद है इसलिए प्रेक्टिस के लिए ज्यादा समय मिल रहा है |स्कूल चालू होने पर मुश्किल से समय निकाल पाते हैं|
जय बजरंग अखाड़ा गोकुलपुर के प्रशिक्षक विजय यादव ने कहा कि आज भी इस खेल को लेकर लड़कियों में झिझक रहती है| हम सबकी जिंदगी में एक दौर होता है जब हम खुद को लेकर कई तरह के संशयो से भरे होते हैं। लोग क्या कहेंगे वाला हव्वा आपको घेरे रहते हैं और आप इतने डरे हुए होते हैं कि ठीक से मुस्कुरा भी नहीं पाते| इन्हीं झिझक को दूर कर हमें आगे बढ़ना है | डर को भगाने के लिए हमें मानसिक रुप से मजबूत होना होगा| उन्होंने बताया कि उनके व्यायाम शाला में में 30 से 35 लड़के लड़कियां प्रशिक्षण के लिए आ रहे हैं। शाला दो शिफ्ट में 6:30 बजे से 8:30 बजे और शाम को भी यही समय में संचालित होती है |उन्होंने कहा कि उनकी शाला में लड़कियों में झिझक को दूर करने और मानसिक रुप से मजबूत करने लड़कों और लड़कियों के बीच फाइट कराई जाती है | इससे उसके खेल में सुधार आता है साथ ही उसमें यह आत्मविश्वास जागता है कि आज उसने लड़के को पराजित किया है | यह उसके आत्मबल को बढ़ाता है और यही उसकी जीत का आधार बनता है | उन्होंने आगे कहा कि उनका एक ही सपना है कि नेशनल में गोल्ड जीतकर शहर व प्रदेश का नाम रोशन करना है|
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010 में भोपाल में आयोजित पांचवें नेशनल इंटरस्कूल टूर्नामेंट ग्रुप में गोकुलपुर के ही होमलाल पिता नंदकुमार ने कांस्य पदक प्राप्त किया था। वहीं प्रभात भोयर ने भी 16 से19 फरवरी 2012 में पायका के तहत सिरसा हरियाणा में आयोजित राष्ट्रीय सपर्धा में कांस्य पदक लेकर शहर व प्रदेश का नाम रोशन किया था |