बदले की भावना को जीवन से हटाना चाहिए – प. पू. मधु स्मिता श्री जी म. सा.

160

पहले अपना चिंतन करे फिर दूसरों को परखे -प. पू. सुमित्रा श्री जी म. सा.

धमतरी । चातुर्मास के तहत इतवारी बाजार स्थित पार्श्वनाथ जिनालय में प्रवचन जारी है। जिसके तहत आज प. पू. मधु स्मिता श्री जी म. सा. ने कहा कि साधक के जीवन में 22 परिश्रम आते है। जिस प्रकार व्यक्ति कितना जानता है और कितना आचरण करता है उसी प्रकार साधना के मार्ग पर चलना और कसौटी पर खरा उतरना अलग-अलग बाते है। अलाभ परिश्रम में इच्छित वस्तु की प्राप्ति नहीं होती। भगवान महावीर स्वामी कहते है कि यह न सोचे कि आज प्राप्त नहीं हुआ है तो कभी प्राप्त नहीं होगा। राम ने रावण का वध किया, राम के पास गिनती के वानरो की सेना थी जबकि रावण के पास विशाल सेना थी, लेकिन राम ने विजय पाया। यह दृढ़ंता व सत्य कभी पराजित नहीं होता यह सोच के कारण हुआ। व्यक्ति आशा व विश्वास के सहारे चलते तो कभी पराजित नहीं होता। पांडव पांच थे, कौरव सौ थे। पांडव के पास कृष्ण थे। कौरव के पास हजारों की सेना थी, लेकिन सत्य के सहारे पांडव ने विजय पाया। भगवान महावीर ने आशावाद का सूत्र दिया है। भगवान महावीर ने परम सत्य की खोज की है। जहां प्रायचिश्त होता है वहां दूसरों के प्रति कुभाव नही होता। साधक किसी लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ता है तो अवश्य ही लक्ष्य की प्राप्ति होती है। समता, सहिष्णुता, साधुता के साथ साधक आगे बढ़ता है तो सबक कुछ प्राप्त कर सकता है।

बदले की भावना को जीवन से हटाना है। जाने अनजाने कर्म का बंधन करते चले जाते है। हमे समता सहिष्णुता का परिचय देना है। प. पू. सुमित्रा श्री जी म. सा. ने कहा कि संसार में अनेक तरह के लोग रहते है। जिनमें उतनी ही प्रकार की बुद्धि होती है उनमें कुछ सदबुद्धि व कुछ दुरबुद्धि के होते है। इसी प्रकार प्रकृति में भी जोडऩे व तोडऩे का स्वाभाव होता है। ईष्र्या, निंदा मन की आत्मीयता विश्वास व प्रेम को तोड़ देते है। जब कोई अपने परिवार समाज, व्यापार या अन्य क्षेत्रो में आगे बढ़ता है तो दूसरों को जलन होती है जिससे ईष्र्या होती है फिर निंदा का भाव उत्पन्न होता है। ऐसे लोग समाज, धर्म व भगवान को भी नहीं छोड़ते। कभी किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए। यदि सम्मित, शुद्ध भाव जागृत हो जाये तो सभी का शुद्ध रुप नजर आएगा। मन में शुद्ध भाव नहीं होने से व्यक्ति नीचे गिर जाता है। पहले अपना चिंतन करे फिर दूसरों को परखे। अपने स्वाभाव को बदलने की प्रक्रिया में आगे बढ़े। हम बुराई के प्रति जल्द आगे बढ़ते है। प्रवचन का श्रवण करने बड़ी संख्या में जैन समाजजन उपस्थित रहे।