यह कभी नहीं सोचना कि हमारे कर्मों को कोई नहीं देख रहा है..पाटेश्वर धाम गोअभ्यारण्य में पुरुषोत्तम मास पर भव्य कथा

496

धमतरी | पूरे देश में ऑनलाइन सत्संग की सराहना की जा रही है तथा देश में एक उदाहरण प्रस्तुत करने वाला यह अद्वितीय कार्य अन्य संत गणों के लिए भी प्रेरणा का मार्ग बन चुका है| आज ऑनलाइन सत्संग परिचर्चा को पूरे 6 माह पूर्ण हो चुके हैं| पाटेश्वरधाम की नंदी शाला, सीता रसोई ने सभी को प्रेरणा प्रदान की थी और अब ऑनलाइन सत्संग भी सभी के लिए मार्गदर्शन का केंद्र बना हुआ है | यूट्यूब पर बाबा जी के पाती कार्यक्रम की प्रशंसा पूरे देश में होती है| यह कार्यक्रम देश में ही नहीं बल्कि बाहर विदेशों में भी देखा जा रहा है एवं सराहा जा रहा है | धार्मिक एवं समसामयिक विषयों से सुशोभित यहां कार्यक्रम सभी को विभिन्न विषयों से अवगत कराता है | इसमें विभिन्न जानकारियां भी प्रेषित की जाती है| विगत 1 माह से पाटेश्वर धाम गो अभ्यारण्य में पुरुषोत्तम मास की बहुत ही सुंदर कथा का आयोजन किया जा रहा है| इसका युटुयूब पर लाइव प्रसारण प्रतिदिन दोपहर 2 से 5 बजे किया जाता है| कथा में पूर्णेंदु महाराज जी द्वारा कथा वाचन एवं बाबा जी के द्वारा गाए गए भजनों की प्रस्तुति पूर्वी बिटिया के द्वारा किए गए सुंदर-सुंदर भजनों पर नृत्य की प्रस्तुति सभी का मन मोह लेती है| सत्संग परिचर्चा में रिचा बहन के द्वारा मनुष्य के व्यवहार पर सुंदर पंक्तियों को व्यक्त किया गया| बाबाजी ने बताया कि मनुष्य स्वयं की मूल्य को नहीं पहचानता, उसे भगवान ने अमूल्य शरीर दिया है| दो आंख, एक नाक, दो हाथ, दो पैर से सुशोभित हमारा यह शरीर बाहरी रूप से बहुत अधिक महत्वपूर्ण एवं अमूल्य है जिसकी आप कोई कीमत अदा नहीं कर सकते, जितना बाहरी अंग हमारे लिए महत्वपूर्ण है उतना ही कीमती हमारा आंतरिक गुण एवं व्यवहार भी है| हमारा हृदय जिसमें  परमात्मा का वास है वह कितना कीमती है|शांति जो चित में विद्यमान है वह कितनी मूल्यवान है| हमारी प्रसन्नता जो संसार में कुछ भी देकर प्राप्त नहीं की जा सकती और हमारे मुख की मुस्कान जो प्रकृति के किसी भी जीव या प्राणी के पास नहीं है आपके पास है तो सोचिए मनुष्य के पास आंतरिक रूप से कितनी दिव्य शक्तियां विद्यमान है या अदृश्य शक्तियां जब आप इनको पहचान कर निखार पाएंगे तो यह दिव्य गुण आपको कितना मूल्यवान बना देगा| अपने आंतरिक दिव्य शक्तियों को पहचान कर उनका सदुपयोग कर अपने बाहरी आवरण से सदकर्म करना चाहिए|  ऐसा कभी नहीं सोचना चाहिए कि कोई हमारे अच्छे कर्मों को नहीं देख रहा है | सत्संग परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए रामफल ने चौपाई “पांच पहर धंधे में बिता …… मुक्ति कैसे होए, के भाव को स्पष्ट करने की विनती बाबाजी से की| इन पंक्तियों के गुण भाव को स्पष्ट करते हुए बाबाजी ने बताया कि यदि हम अपने जीवन के 5 प्रहर धंधा करते हैं और वह कर्म किसी की मंगल कामना के लिए परमार्थ के लिए किया जाता है तो आपका वह कर्म भी सार्थक हो जाता है| जीवन के 3 प्रहर आप निद्रा में निकाल देते हैं| एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए दिन में सोना वर्जित होता है लेकिन बच्चों, वृद्ध और रोगी को इसके लिए छूट होती हैं |रात्रि में जल्दी सोकर अधिकतम 5 घंटे की निद्रा विद्यार्थी को एक सामान्य व्यक्ति को अवश्य रूप से लेनी चाहिए, वह निद्रा भी प्रभु को समर्पित और उनके सुमिरन के साथ होनी चाहिए |सोते समय प्रभु का स्मरण करके अपने द्वारा दिनभर किए गए अच्छे कर्मों और बुरे कर्मों का स्मरण करते हुए अच्छे कर्मों की सराहना करते हो बुरे कर्म का प्रायश्चित करते हुए सोया जाए तो वह सोना भी भजन के समान हो जाता है तो इस तरह सोना भी सार्थक हो जाएगा|अब बचा 1 प्रहर में प्रभु सुमिरन भजन कैसे हो | यह कभी भी आवश्यक नहीं कि आप पूरा समय प्रभु का ही नाम लेते रहे |उनकी ही भक्ति करते रहे| निद्रा और कर्म भी आवश्यकता है |अगर इसमें आप एक पल भी सच्चे ह्रदय से मन की गहराइयों से प्रभु का स्मरण करते हैं तो वह प्रहर आपके जीवन को सार्थक बना देता है|