उम्मीदों की कोपल

601

परेशानियों से घिरकर
झंझावतों को सहकर
फिर उठ खड़ा होना
यह तुमने सिखाया है
सूखने की कगार पर थे
तलवार की धार पर थे
कमजोर हो रही थी जड़े
फिर भी वजूद के लिए लड़े
संघर्ष को हथियार बनाकर
जीवन वापस पाया है
मुरझाकर फिर खड़ा होना
यह तुमने सिखाया है
बारिश की हर बूंदों के साथ
उम्मीदों ने फिर ली करवट
बिना थके बिना हारे चले तुम
थी तुम्हारी मंजिल दुर्गम पर्वत
पतझर के मौसम में भी
हरियाली का संदेश आया है
सब कुछ गंवाकर भी
मुस्कराना तुमने सिखाया है
परिस्थितियां थी विपरीत
पर विजय तुमने पाया है
लड़े तुम हर सांसो के साथ
गिरवी रखा अपना हर ख़्वाब
अनगिनत सवालों का
निकाल लाये तुम जवाब
तुम्हे ठोकरों पर रखने वाला
हर चेहरा मुरझाया है
रक्त के एक एक बूंद से
जड़ों को अमृतरस पिलाया है
भटकी हुई निगाहों को
रास्ता सही बताया है
जीवन को करे कैसे आलोक
यह तुमने सिखाया है


 दीप शर्मा  शिव चौक, धमतरी