ग्रामीणों ने की अच्छी फसल की कामना
धमतरी | शहर समेत ग्रामीण अंचलो में पोला का त्यौहार धूमधाम से मनाया गया| पर्व को लेकर ग्रामीणों में खासा उत्साह देखा गया | सुबह किसानो ने अपने बैलों को नहलाने के बाद सजाकर उसकी पूजा-अर्चना की | नादिया बैल में चीला चढ़ाकर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की| छोटे छोटे बच्चों ने मिटटी और लकड़ी से बने बैलों को गली मोहल्लों में दौड़ाया| बच्चियों ने पोरा जांता का खेलकर खुशिया मनाई | पोला मूलत: खेती-किसानी से जुड़ा त्योहार है। भाद्रपद कृष्ण अमावस्या को यह पर्व मनाया जाता है। पोला त्योहार मनाने के पीछे धारणा है कि अगस्त माह में खेती-किसानी काम समाप्त होने के बाद इसी दिन अन्नमाता गर्भ धारण करती है यानी धान के पौधों में इस दिन दूध भरता है इसीलिए यह त्योहार मनाया जाता है।
यह त्योहार पुरुषों, स्त्रियों एवं बच्चों के लिए अलग-अलग महत्व रखता है। इस दिन पुरुष पशुधन (बैलों) को सजाकर उनकी पूजा करते हैं। स्त्रियां इस त्योहार के वक्त अपने मायके जाती हैं। छोटे बच्चे मिट्टी के बैलों की पूजा करते हैं। इस अवसर पर जहां घरों में बैलों की पूजा होती है, वहीं लोग पकवानों का लुत्फ भी उठाते हैं। इस दिन बैल सजाओ प्रतियोगिता भी होती है |
पोला पर्व पर शहर से लेकर गांव तक धूम है। जगह-जगह बैलों की पूजा-अर्चना होती रही । गांव के किसान भाई सुबह से ही बैलों को नहला-धुलाकर सजाया फिर उनकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की |इसके बाद घरों में बने पकवान भी बैलों को खिलाए गये । इस दिन मिट्टी और लकड़ी से बने बैल चलाने की भी परंपरा है। घरों में छत्तीसगढ़ी व्जयन ठेठरी, खुरमी, चौसेला, खीर, पूड़ी बनाई गई |