सामाजिक जागरूकता से एनीमिया पर मिलेगी जीत

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रायपुर | एनीमिया या शरीर में खून की कमी आज एक बड़ी समस्या है जो कुपोषण का ही एक प्रकार है। इसमें रक्त में लाल रक्त कोशिकाओं अर्थात हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है। सामान्यतः महिलाओं में 12 ग्राम प्रति डेसीलीटर से कम हीमोग्लोबिन, गर्भवती महिलाओं में 11 ग्राम प्रति डेसीलीटर और पुरूषों में 13 ग्राम प्रति डेसीलीटर हीमोग्लोबिन से कम होना एनीमिया माना जाता है। हीमोग्लोबिन शरीर में आक्सीजन के परिवहन के लिए आवश्यक होते हैं। इसकी कमी से उत्पन्न विकार को ही एनीमिया कहा जाता है। हीमोग्लोबिन

मुख्य रूप से आयरन और प्रोटीन का बना होता है। इसके प्रमुख घटक आयरन की कमी होने से भी शरीर में लाल रक्त कणिकाओं का बनना कम हो जाता है। कई बार इससे मरीज की जान भी चली जाती है। इससे बचने के लिए मरीज को आयरन युक्त पोषक पदार्थ खाने की सलाह दी जाती है। भारत में एनीमिया की स्थिति देखी जाए तो महिलाओं और किशोरियों में सामान्यतः एनीमिया अधिक देखा गया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ सर्वेक्षण-4 (एनएफएचएस-4) के अनुसार 15 से 49 आयु वर्ग की 53 प्रतिशत महिलाएं और 23 प्रतिशत पुरूष एनीमिक पाए गए हैं। सर्वे के अनुसार छत्तीसगढ़ में 15 से 49 आयु वर्ग की 47 प्रतिशत महिलाएं और किशोरियां एनीमिया से पीड़ित हैं। इससे पता चलता है कि लगभग आधी फीसदी महिलाएं  एनीमिया से पीड़ित हैं। इसी तरह 6 से 59 माह के  41.6 प्रतिशत छोटे बच्चों में एनीमिया पाया गया है। राष्ट्रीय सर्वे के अनुसार 24 महीनों तक के बच्चों में एनीमिया होने की दर अधिक देखी गई है। छत्तीसगढ़ में कुपोषण और एनीमिया की स्थिति को गंभीरता से लेते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 2 अक्टूबर 2019 से मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की शुरूआत की है। योजना के तहत महिलाओं और बच्चों को गर्म पौष्टिक भोजन,स्थानीय स्तर पर उपलब्ध विशेष अनाज से बने खाद्य पदार्थ और अतिरिक्त पौष्टिक आहार देने की पहल की गई है। महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती अनिला भेंड़िया के नेतृत्व में इसके तहत कई विभागों के समन्वय और जन सहयोग से कुपोषण और एनीमिया के विरूद्ध जंग लड़ी जा रही है। मलेरिया मुक्ति अभियान, पोषण वाटिका के माध्यम से स्थानीय पोषक आहार की उपलब्धता, किशोरियों और गर्भवती माताओं को आयरन फोलिक एसिड की गोलियों का वितरण, कृमि मुक्ति अभियान के तहत बच्चों को कृमि नाशक दवा देने सहित स्वास्थ्य जांच और जागरूकता के कई उपाय किये जा रहे हैं। स्कूलों में बच्चों को मध्यान भोजन वितरण और पोषण के लिए किचन कार्डन भी कुपोषण मुक्ति की पहल का एक हिस्सा हैं।
 कुपोषण और एनीमिया को रोकने के लिए शासन प्रशासन द्वारा भरसक प्रयास लगातार किया जा रहा है, किन्तु इसमें अपेक्षाअनुसार परिणाम के लिए कुछ आवश्यक बिन्दुओं को समझना और उन पर अमल किया जाना जरूरी है। यह शासन के साथ व्यक्तिगत, परिवार और समाज की जागरूकता का विषय है। एनीमिया के लिए पर्याप्त पौष्टिक पदार्थों का अभाव ही जिम्मेदार नहीं बल्कि कई बार समुचित जानकारी और शिक्षा का अभाव, बीमारी, कम उम्र में शादी, अधिक बच्चे, गरीबी, सामाजिक और भौगोलिक परिस्थितयों के साथ ही आनुवांशिक कारण भी जिम्मेदार होते हैं। गर्भवती माताओं में गर्भस्थ शिशु के लिए रक्त निर्माण होने के कारण एनीमिया होने की संभावना होती है। महिलाओं में किशोरावस्था और रजोनिवृत्ति के बीच की आयु में एनीमिया सबसे अधिक होता है। किशोर और किशोरियों में सामान्यतः आयरन की कमी के कारण खून की कमी (एनीमिया) होती है। कई बार पेट में कीड़ों और परजीवियों द्वारा  पोषक पदार्थ चूस लेने के कारण भी एनीमिया हो जाता है। मलेरिया होने पर भी शरीर में लाल रक्त कणिकाओं की कमी हो जाती है। डायरिया और डिसेन्ट्री से भी बच्चों में पोषक पदार्थों की कमी हो जाती है जो एनीमिया का कारण हो सकती है |एनीमिया शरीर के लिए मौन शत्रु की तरह होता है। इससे अन्य बीमारियां होने की भी सभावना बढ़ जाती है। शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर बहुत कम होने पर अन्य बीमारियों के उपचार और ऑपरेशन में दिक्कत आ सकती है। इससे प्रसव के समय महिलाओं की मृत्यु की संभावना भी अधिक रहती है। मां और बच्चों में हीमोग्लोबिन की कमी के कारण कई बार बच्चों में विकलांगता तक देखी गई है। इससे उबरने के लिए खान-पान और साफ-सफाई से संबंधित व्यवहार में व्यापक परिवर्तन की जरूरत है। सबसे पहले हम अपने शरीर की पोषण आवश्यकताओं, कमियों और कमियों के कारण दिख रहे लक्षणों को समझें और उन्हें दूर करने का प्रयास करें। इसमें स्थानीय उत्पाद और पोषक पदार्थ हमारी मदद कर सकतेे हैं।  एनीमिया के कारण व्यक्ति में जल्दी थकावट, कमजोरी, सांस फूलना, घबराहट, चक्कर आना, सुस्ती, बार-बार बीमार पड़ना, हाथ-पैरों में ठंडापन या सूनापन, सूजन और बेहोशी जैसे लक्षण दिखाई देने लगतेे हैं। त्वचा, जीभ, नाखूनों और पलकों के अंदर का रंग सफेद दिखने लगता है। महावारी में अधिक खून बहना भी किशोरियों में खून की कमी का लक्षण है। इन लक्षणों को नजरअन्दाज नहीं किया जाना चाहिए। अगर इन में से कोई भी समस्या है तो खून की कमी (एनीमिया) हो सकती है। खून की कमी से बचने के लिए पौष्टिक व आयरन युक्त भोजन, जैसे-हरी पत्तेदार सब्जियां (पालक, मेथी, सरसों सहजन, पुदीना इत्यादि), दालें (काला चना, सोयाबीन, तिल आदि), मांसाहारी आहार (मीट, मछली, मुर्गा, अण्डा) और अनाज, जैसे- गेहूं, ज्वार, बाजार, मूंगफली इत्यादि खाना चाहिए।
विटामिन-सी युक्त आहार नियमित रूप से लेने पर शरीर में आयरन युक्त भोजन आसानी से पच जाता है। ऐसा करने से आयरन की नीली गोली का प्रभाव भी अधिक होता है। आंवला, अमरूद, संतरा, कीनू, अनार, सीताफल, पपीता, नींबू, बेर, टमाटर, आम, फूलगोभी इत्यादि में विटामिन-सी अधिक मात्रा में पाया जाता है। खाना खाने के साथ या उसके 2 घंटे पहले या 2 घंटे बाद तक चाय, कॉफी आदि नहीं पीनी चाहिए। इससे खाने से मिली आयरन का असर कम हो जाता है।