
सिर्फ शरीर से नही मन व भाव से झुके, तप व तेले करे – प. पू. सुमित्रा श्री जी म. सा.
धमतरी | चातुर्मास के तहत इतवारी बाजार स्थित पार्श्वनाथ जिनालय में प्रवचन जारी है। जिसके तहत आचार्य भगवंत परम पूज्य पूर्णानंद सागर सूरीश्वर जी म. सा. ने कहा कि मानव जीवन दुर्लभ है। मानव जीवन पाने देवता भी तरसते है। क्योंकि मानव जीवन से ही आत्मा का कल्याण कर सकते है। इतना दुर्लभ मानव जीवन सहजता से मिला है और हम इसे यूं ही गवां रहे है। मानव जीवन मिलने के बाद भौतिकता की दौड़ में दौड़ते जा रहे है। विचार करे हम क्या यह सब भौतिक चींजे लेकर जाएंगे। आत्मा ही हमारे साथ जाएगी। हमारा अब तक का जीवन व्यर्थ चला गया जो बचा है उसे कैसे संभालना है इस पर विचार करना चाहिए। लेकिन हम विचार नहीं करते। शमशान भूमि पर विचार आता है कि हम सबका एक दिन यह हश्र होगा लेकिन पंच लकड़ी के पश्चात हमारा विचार बदल जाता है। ज्ञानियों ने कहा कि जीवन के शेष समय को धर्म आराधना में लगाए गलत राह को छोड़कर सही राह पर चले। परमात्मा की वाणी का एक अंश भी जीवन में उतार ले तो जीवन में कितना परिवर्तन आ सकता है इस पर विचार करें।
व्यक्ति कुछ धर्म, परिवार व समाज के भय के कारण करता है। लेकिन धर्म स्वयं से करें। भय से कोई कार्य नहीं करना चाहिए। गुरु वाणी के समय हमारा शरीर तो मौजूद रहता है लेकिन हमारा ध्यान कहीं और रहता है। मन बहुत चंचल है इस पर नियंत्रण रखें। हममे सहनशक्ति खत्म हो रही है। छोटी छोटी बातो पर आत्म हत्या किया जाता है आत्महत्या करने के पश्चात अगले 8 जन्मो तक आत्महत्या करनी पड़ती है। फिर सोचे 8 जन्मो की आत्महत्या के पश्चात और कितने जन्मों तक हमे तड़पना पड़ेगा। यह जीवन अनमोल है बार-बार नहीं मिलेगा। इसकी उपयोगिता को समझे जो कार्य आपको बुरा लगता है, दर्द देता है वह दूसरे के साथ न करे। प. पू. सुमित्रा श्री जी म. सा. ने कहा कि शिष्य गुरु के सामने व छोटे बड़ो के सामने कैसे रहे बड़ो का छोटो के प्रति वात्सल्य प्रेम कैसा हो यह विनय सूत्र में बताया गया है। गुरु अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है भगवान जगत गुरु है। भगवान का कोई गुरु नहीं होता इसलिए उन्हें स्वयं बुद्ध कहते है वे स्वयं को स्थापित करते है। उत्तरा अध्ययन सूत्र कहता है सिर्फ शरीर से नही मन व भाव से झुके तप, तेले करे। गुरु शिष्य का क्या भाव होना चाहिए यह गौतम स्वामी व भगवान महावीर से सीखे। उत्तरा अध्ययन सूत्र बार-बार विनय के रास्ते पर जाने के लिए प्रेरित करता है। प्रवचन का श्रवण करने बड़ी संख्या में जैन समाजजन उपस्थित रहे।