
धमतरी जिनालय में प्रवचन, विनय और आत्मज्ञान को बताया जीवन का मूल आधार
धमतरी l श्री पार्श्वनाथ जिनालय, इतवारी बाजार, धमतरी में विराजमान परम पूज्य उपाध्याय प्रवर, अध्यात्मयोगी प्रशम सागर जी महाराज साहेब ने आज प्रातःकालीन प्रवचन में श्रद्धालुओं को जीवन के वास्तविक सुख और आत्मा के विकास का गूढ़ मार्ग समझाया।
परम पूज्य जी ने कहा कि सत्संग और जिनवाणी के माध्यम से ही परमात्मा की वाणी का सच्चा आलंबन मिलता है। उन्होंने कहा, “सच्चा सुख हम बाहर नहीं, अपने भीतर आत्मा में खोजें। बाहर का सुख अस्थायी और दुःख का कारण बनता है, जबकि आत्मिक सुख ही स्थायी और आत्म-विकास का आधार है।”
तीन कारणों से जिनवाणी का आलंबन आवश्यक
प्रशम सागर जी महाराज ने बताया कि सत्संग से तीन बातें जीवन में आती हैं —
1️⃣ सत्य को जानना,
2️⃣ सत्य को मानना,
3️⃣ सत्य को जीना।
उन्होंने कहा कि संसार में हम जो भी करते हैं, वह सुख की तलाश में करते हैं, लेकिन सच्चा सुख तभी मिलता है जब हम उसे अपनी आत्मा के भीतर अनुभव करते हैं, बाहर नहीं।
विनय ही सभी सद्गुणों का प्रवेशद्वार
प्रवचन में उन्होंने विनय (नम्रता) को सर्वोत्तम गुण बताते हुए कहा, “विनय के बिना विद्या शोभायमान नहीं होती। विनय ही वह द्वार है जिससे होकर अन्य सभी सद्गुण हमारे जीवन में आते हैं।“
उन्होंने कहा कि संतोष सुख का कारण है और लोभ दुःख का। विनय और संतोष के साथ चलने वाला व्यक्ति आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है।
राग से अनुराग और अनुराग से वीतराग की यात्रा
उन्होंने प्रवचन में समझाया कि राग से ऊपर उठकर अनुराग रूपी सेतु पर चलना आवश्यक है, तभी हम वीतराग अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं। संसार में सुख बढ़े या न बढ़े, आत्मा में आनंद बढ़ना चाहिए, क्योंकि आनंद से ही आराधना में वृद्धि होती है।
शासन विराधना से बचे समाज
परम पूज्य जी ने कहा कि तीन प्रकार की विराधना होती है :
1️⃣ संयम विराधना — प्राणियों के प्रति हिंसा,
2️⃣ आत्म विराधना — अपने शरीर और आत्मा के साथ गलत आचरण,
3️⃣ शासन विराधना — जिनशासन का अनादर या निंदा।
उन्होंने बताया कि आज के समय में भाव हिंसा (आंतरिक हिंसा) द्रव्य हिंसा से अधिक हो गई है, क्योंकि हमारी आत्मा कठोर हो रही है। उन्होंने यह भी कहा कि मृत्यु के समय हमारे साथ कोई वस्तु नहीं जाती, केवल हमारे गुण, धर्म और कर्म ही आत्मा के साथ रहते हैं, यही भावी भव को प्रभावित करते हैं।
भोगप्रधान जीवन के बजाय योगप्रधान जीवन जरूरी
प्रशम सागर जी महाराज ने वर्तमान पीढ़ी को भोगप्रधान जीवनशैली से बचने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि जब जीवन योगप्रधान होता था तो समाज में विश्वास और शांति अधिक थी, आज के समय में विश्वास की कमी का मूल कारण भोगप्रधान दृष्टि ही है।
श्रद्धालुओं में दिखा उत्साह
प्रवचन में नगर सहित आसपास के जैन श्रद्धालुओं ने बड़ी संख्या में उपस्थित होकर आत्मज्ञान और धर्मोपदेश का लाभ लिया। जिनालय प्रबंधन समिति ने सभी श्रद्धालुओं से जिनशासन के सम्मान और आत्म-सुधार हेतु सतत् प्रयासरत रहने का आग्रह किया।