
धमतरी | परम पूज्य उपाध्याय प्रवर अध्यात्मयोगी महेंद्र सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवामनीषी स्वाध्याय प्रेमी मनीष सागर जी महाराज साहेब के सुशिष्य परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य योगवर्धन जी महाराज साहेब श्री पार्श्वनाथ जिनालय इतवारी बाजार धमतरी में विराजमान है। आज दिनांक 30 जुलाई 2025 को परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब ने प्रवचन के माध्यम से फरमाया कि आबाल ब्रम्हचारी नेमीनाथ परमात्मा का जन्मकल्याणक महोत्सव कल मनाया गया।आज परमात्मा का दीक्षा कल्याणक है। परमात्मा जो अपनी बारात लेकर जा रहे थे, वो पशुओं की करुण पुकार सुनकर लौट गए और गिरनार की ओर चले गए। उन्होंने सोचा मेरे विवाह के अवसर पर इन मूक पशुओं का वध होगा। इन्होंने किसी का क्या बिगाड़ा है। ये सभी तो निर्दोष है। लेकिन आज मेरे कारण इनका वध हो गया तो मेरा भव भव बिगड़ जाएगा। यह विचार करते हुए एक पल भी गंवाए बिना तुरंत अपनी बारात हो मुड़ने का आदेश दिया और गिरनार पर्वत की ओर चल पड़े। वहां जाकर दीक्षा अर्थात संयम जीवन स्वीकार कर लिया। यह सब राजीमती अपने महल से देख रही थी। बारात लौटते हुए देखकर राजीमति भी उनके पीछे गिरनार की ओर चली गई। वहां जाकर उन्होंने भी संयम जीवन स्वीकार कर लिया। और नेमीनाथ भगवान से पहले राजीमती का निर्वाण हो गया। भगवान नेमीनाथ का सावन सुदी छठ के दिन अर्थात आज के दिन दीक्षा कल्याणक मनाया जाता है। सावन सुदी छठ का दिन है। आज तीन का संयोग है। पहला परमात्मा नेमीनाथ भगवान का दीक्षा कल्याणक है । दूसरा आज के ही दिन छगनलाल जी महाराज साहेब की पुण्यतिथि भी मनाई जाती है। आप दीर्घ तपस्वी थे। 52 उपवास की तपस्या के साथ आपका आज के दिन ही देवलोक गमन हुआ। तीसरा आज के दिन को खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री मणिप्रभ सागर सुरीश्वर जी महाराज साहेब ने आज के दिन को खतरगच्छ दिवस घोषित किया था। इसलिए भी आज का दिन विशेष है। आचार्य श्री जिनचंद्र सुरी जी महाराज साहेब ने संवेग ग्रन्थ लिखा। आचार्य अभयदेव सुरी जी ने दुर्लभ आगमों की टीका की। आपके द्वारा 9 अंगों की टीका की गई। जब जीवन में लगे कि अब संयम से शरीर का पालन संभव नहीं है। ऐसा विचार करते हुए शरीर को आहार पानी देना बंद कर देना। और समाधि मृत्यु का प्रयास अर्थात अनशन करना। आपके द्वारा जयतिहुवन स्तोत्र की रचना की गई। दूसरे दादा मणिधारी श्री जिनचंद्र सुरी जी महाराज साहेब ने छह वर्ष की उम्र में दीक्षा ले ली थी। और 8 वर्ष की उम्र में आपकी योग्यता को देखकर आचार्य की पदवीं दी गई। एक बार राजा मदन पाल के निवेदन पर गुरु के द्वारा मना किए जाने पर भी जिनशासन की प्रभावना जानकर दिल्ली पधारे। दिल्ली में ही आपका देवलोक गमन हुआ। देवलोक गमन से पूर्व आपके श्रावकों को बताया था मेरी अर्थी को बीच में रोकना मत साथ में मेरे अंतिम समय में मेरे मस्तक के सामने एक दूध का कटोरा रखना ।मेरे मस्तक में रही हुई मणी उसमें आ जाएगी। किंतु आपके असमय देवलोक गमन के साथ श्रीसंघ यह सब भूल गया। और अर्थी को बीच में रोक दिया गया। उसके बाद हाथी से भी उठाने का प्रयास किया गया किंतु आपकी अर्थी वहां से नहीं हिली। अंत में वही पर आपका अंतिम संस्कार किया गया। मस्तक में मणि होने के कारण ही आपको मणिधारी जिनचंद्र सुरी जी कहा जाता है। इसके बाद दादा श्री जिन कुशलसुरी जी हुए। 9 वर्ष की उम्र में अपने संयम जीवन स्वीकार किया। आपने विशेष रूप से उस समय लोगो को व्यसन मुक्ति के लिए प्रेरित किया। आपने 50000 नूतन श्रावक बनाए। काले गोरे भैरू आपकी सेवा में हमेशा उपस्थित रहते थे। दादा कुशल सूरी गुरुदेव को प्रकट प्रभावी कहा जाता है। वर्तमान पाकिस्तान के देराउर में आपका देवलोक गमन हो गया। देवलोक गमन के बाद भी एक भक्त को आपने पूर्णिमा की रात्रि में दर्शन दिए। आपका वह पद चिन्ह आज भी मालपुरा तीर्थ में है। और वह जन जन की आस्था का केंद्र बना हुआ है। जिनपद्म सुरी जी महाराज साहेब खरतरगच्छ परंपरा में हुए। आपको प्रवचन देने की विशेष कला नहीं थी। आपके द्वारा साधना के विशेष बल से जिनशासन की प्रभावना की गई। विनयप्रभ उपाध्याय द्वारा गौतमरास की रचना की है। एक ही रात्रि में आपके द्वारा 1300 गाथा याद किया गया था। इसके बाद अकबर प्रतिबोधक दादा श्री जिनचंद्र सुरी जी महाराज साहेब हुए। 9 वर्ष की उम्र में आपकी दीक्षा हुई। आपके द्वारा अमावस के दिन एक साधु द्वारा भूलवश अमावस्या के दिन पूर्णिमा कह दिया गया। उस साधु द्वारा इसकी जानकारी दादा गुरुदेव को दी गई। तब आपके द्वारा जिनशासन की प्रभावना के लिए एक चांदी की थाली लेकर उसे आसमान में स्थित कर दिया। और परिणाम स्वरूप चारों ओर पूर्णिमा की चांदनी की तरह प्रकाश फैल गया। जिनशासन की प्रभावना हुआ। जिनशासन की रक्षा और प्रभावना के लिए दादा गुरुदेव द्वारा समय समय पर कई महत्वपूर्ण कार्य किए गए । इसके बाद आनंदघन जी महाराज साहेब हुए। आपका संपर्क यशोविजय जी महाराज साहेब से हुआ। काशी के पंडितों द्वारा यशोविजय जी महाराज साहेब को तार्किक शिरोमणि की पदवीं दी गई थी। जिनशासन की महान प्रभावना आपके द्वारा की गई। समय सुंदर जी महाराज साहेब हुए। अपने एक ही वाक्य के 10 लाख अर्थ दिए। जिन जिन आचार्य भगवन्तों गुरु भगवन्तों ने जिनशासन की प्रभावना के लिए योगदान दिए आज उन सभी को याद करने का अवसर है।