बस्तर दशहरा 2025 की शुरुआत पाट जात्रा से, माँ दंतेश्वरी मंदिर में पारंपरिक पूजा के साथ “

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विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा ‘पाट जात्रा’ से शुरू – 75 दिनों तक चलने वाले इस पर्व की शुरूआत श्रद्धा और परंपरा के साथ

रायपुर   l  हरियाली अमावस्या के पावन अवसर पर बस्तर की आराध्य देवी माँ दंतेश्वरी के चरणों में गुरुवार को पारंपरिक पूजा “पाट जात्रा” के साथ विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरा की विधिवत शुरुआत हो गई। जगदलपुर स्थित माँ दंतेश्वरी मंदिर परिसर में इस अवसर पर पारंपरिक रीति-रिवाजों और लोक आस्थाओं के साथ विशेष पूजा-अर्चना संपन्न हुई।

इस शुभ अवसर पर बस्तर सांसद एवं बस्तर दशहरा समिति के अध्यक्ष महेश कश्यप, जगदलपुर विधायक किरण देव, महापौर संजय पांडे, जनप्रतिनिधि, समिति के परंपरागत सदस्य जैसे मांझी-चालकी, मेम्बर-मेम्बरीन, पुजारी-गायता, पटेल, नाईक-पाईक, तथा बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।

रथ निर्माण के औजारों की पूजा
बस्तर दशहरा के पहले चरण ‘पाट जात्रा’ में, रथ निर्माण में प्रयुक्त होने वाले परंपरागत औजारों – जैसे ठुरलू खोटला – की पूजा की गई। यह रस्म रथ निर्माण की औपचारिक शुरुआत को दर्शाता है, जो आगे चलकर विभिन्न पूजा विधानों और उत्सवों की श्रृंखला में परिणत होता है।

75 दिन चलने वाला पर्व – तिथि अनुसार प्रमुख आयोजन:
यह पर्व लगभग 75 दिनों तक चलेगा और इसके अंतर्गत अनेक पारंपरिक पूजा विधानों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। प्रमुख तिथियां इस प्रकार हैं:

05 सितम्बर (शुक्रवार) – डेरी गड़ाई पूजा विधान
21 सितम्बर (रविवार) – काछनगादी पूजा
22 सितम्बर (सोमवार) – कलश स्थापना
23 सितम्बर (मंगलवार) – जोगी बिठाई पूजा
24 से 29 सितम्बर – नवरात्रि पूजा एवं रथ परिक्रमा
30 सितम्बर (मंगलवार) – महाअष्टमी एवं निशा जात्रा
01 अक्टूबर (बुधवार) – कुंवारी पूजा व मावली परघाव
02 अक्टूबर (गुरुवार) – भीतर रैनी व रथ परिक्रमा
03 अक्टूबर (शुक्रवार) – बाहर रैनी व रथ परिक्रमा
04 अक्टूबर (शनिवार) – काछन जात्रा व मुरिया दरबार
05 अक्टूबर (रविवार) – कुटुम्ब जात्रा (देवी-देवताओं की विदाई)
07 अक्टूबर (मंगलवार) – मावली माता की डोली विदाई पूजा
आस्था, परंपरा और जनभागीदारी का पर्व
बस्तर दशहरा केवल धार्मिक उत्सव नहीं बल्कि यह आदिवासी संस्कृति, सामाजिक समरसता और जन आस्था का जीवंत प्रतीक है। यह पर्व माँ दंतेश्वरी के प्रति श्रद्धा, बस्तर की सांस्कृतिक विरासत और परंपरागत मान्यताओं को समर्पित है, जिसमें प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर ग्रामीण समाज के प्रतिनिधि – सभी की सक्रिय भागीदारी रहती है।