“जीवन में धर्म का आमंत्रण और आत्मा का निरीक्षण आवश्यक” — परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज

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धमतरी | परम पूज्य उपाध्याय प्रवर अध्यात्मयोगी महेंद्र सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवामनीषी स्वाध्याय प्रेमी मनीष सागर जी महाराज साहेब के सुशिष्य परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य योगवर्धन जी महाराज साहेब श्री पार्श्वनाथ जिनालय इतवारी बाजार धमतरी में विराजमान है। आज दिनांक 2 अगस्त 2025 को परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब ने प्रवचन के माध्यम से फरमाया कि हे परमात्मा मेरा अर्थात जीव का जीवन संसार में नेक बन जाए। कम से कम मै अच्छा इंसान बन जाऊं। भौतिकता की इस चकाचौंध में मैं खो गया हूँ। आम के फल की चाह तो करता हूँ लेकिन बीज नीम के बोता हूँ। हे भगवान चाहे कैसी भी मेरी क्षमता हो लेकिन समता को कभी न छोड़ू। मैत्री भाव संसार में सभी जीव के साथ मेरा हो , भले ही योगी न बन पाऊं। लेकिन धीर, वीर और गंभीर बनूं मैं। और सभी के लिए उपयोगी बनूं। आत्म का सुख त्याग कर मैं आज तक पुद्गल में ही अटका हुआ हूँ। मानव जीवन पाकर भी इसके उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पाया। परमात्मा कहते है अब ऐसा अवसर मिला है कि जीव स्वयं को पहचाने। आत्म बोध को प्राप्त करे ताकि आत्मा का विकास हो सके। ज्ञानी कहते है वास्तव में ज्ञान वही सार्थक है जो दुख को दूर करे। ज्ञान से जीवन का विकास होना चाहिए। जिस प्रकार एक व्यापारी को कितना विक्रय उसने किया उससे कोई मतलब नहीं होता बल्कि लाभ कितना हुआ उससे मतलब होता है। उसी प्रकार हमें ज्ञान कितना है वह महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि उससे हमारा दुख कितना कम हो रहा है ये महत्वपूर्ण है। जब कोई भी क्रिया ज्ञान के साथ किया जाता है तो मुक्ति निश्चित है। हम कोई भी धर्म अनुष्ठान करके सुख बढ़ने की कामना करते है जबकि हमें पाप कम हो ऐसी कामना करना चाहिए। जीवन में विषय-कषाय को कम करने के लिए धर्म कार्य होना चाहिए। संपत्ति के प्रति स्वार्थ और स्नेह न रखने वाला ही संसार को छोड़कर सिद्ध अवस्था तक पहुंच सकता है। धर्म का पहला फल यही है कि जीवन में पुण्य बढ़ता है। इसलिए धर्म करके पुण्य नहीं मांगना चाहिए बल्कि पापों से मुक्ति और संसार से सिद्ध अवस्था की ओर गमन मांगना चाहिए। धर्म से जीवन में सद्गुणों का विकास होना चाहिए। धर्म कार्य से जीवन में विनय, सरलता, अनुशासन आदि गुणों का विकास होना चाहिए। पूर्व जन्म के पुण्य के कारण हमें साधन, सुविधा और सम्पन्नता मिली है। लेकिन अब इस जन्म में पुण्य नहीं करेंगे तो आने वाले भव में कुछ नहीं मिलेगा। हम जीवन में संसार के साधनों में सुख और शांति खोजते है जबकि परमात्मा कहते है साधन और सुविधा को छोड़ने पर ही सुख और शांति मिल सकता है। दुर्गति, दुख और दोष जीवन में सद्गुणों का नाश करते है। परमात्मा के दर्शन करते हुए जीवन में संसार के प्रति राग कम होना चाहिए और वैराग्य का भाव आना चाहिए अर्थात परमात्मा के जैसे ही बनने की भावना होनी चाहिए। धर्म से जीवन में परिवर्तन आना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो इसका कारण है हमने जीवन के लिए लक्ष्य का निर्धारण नहीं किया है।
जीवन में धर्म को पाने के लिए 2 शर्त है। धर्म को आमंत्रण – जीवन में धर्म को आमंत्रण देना चाहिए। तभी धर्म करने का आनंद मिल सकता है। जीवन में कोई भी धर्म कार्य अपनी इच्छा से किया जाए तो उस कार्य को करने का अलग ही आनंद प्राप्त होता है। जीवन में पाप कार्यों का निरीक्षण – जीवन में किसी भी पाप कार्य पर हमारा नियंत्रण होना चाहिए। जीवन के दैनिक कार्यों का सतत निरीक्षण करते रहना चाहिए। निरीक्षण से जागरूकता आती है। जागरूकता आने पर ही जीवन से पाप को बाहर किया जा सकता है । उत्तराध्ययन सूत्र का चौथा अध्याय है असंस्करित – ज्ञानियों का कहना है कि हम संसार की सभी वस्तुओं के पीछे भागते रहते है और मृत्यु हमारे जीवन के पीछे भागते रहते है। और जीवन के अभाव में कोई भी सांसारिक वस्तु का भोग संभव नहीं है। हम जीवन में मूल्यवान वस्तुओं के भोग और संग्रह के लिए अमूल्य जीवन को लगातार नष्ट कर रहे है। ज्ञानी कहते है अगर जीवन में अध्यात्म की शुरुवात हो गई तो हमने जीवन का सदुपयोग कर लिया ऐसा माना जाता है। बाहर देखने के स्थान पर अपने अंदर देखना ही अध्यात्म है। जीवन में आत्मा के प्रति प्रमाद का त्याग करना ही अध्यात्म है। जीवन में पाप कार्यों से बचने के लिए सजगता और आत्मा के विकास के प्रति जागृति का आना ही अध्यात्म है। जीवन में जागृति प्राप्त करने के लिए कल्याण मित्रों का अर्थात मोक्ष को प्राप्त कराने में सहायक सामग्रियों का संयोग प्राप्त करना चाहिए। जो जीवन में अर्थ और भोग की प्राप्ति के लिए सहयोग करे वि मित्र होता है लेकिन आत्मा का बोध कराकर मोक्ष तक पहुंचाने वाला कल्याण मित्र कहलाता है। जो निस्वार्थी, देव, गुरु , धर्म पर श्रद्धा रखने वाला और पापभीरू हो, वही कल्याणमित्र हो सकता है। जीवन में सद्गुणो का विकास कराने वाला कल्याणमित्र होता है।