“निर्वाण ही आत्मा का वास्तविक स्वरूप है: प्रशम सागर जी महाराज”

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धमतरी | परम पूज्य उपाध्याय प्रवर अध्यात्मयोगी महेंद्र सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवामनीषी स्वाध्याय प्रेमी मनीष सागर जी महाराज साहेब के सुशिष्य परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य योगवर्धन जी महाराज साहेब श्री पार्श्वनाथ जिनालय इतवारी बाजार धमतरी में विराजमान है। आज दिनांक 1 अगस्त 2025 को परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब ने प्रवचन के माध्यम से फरमाया कि आज 23वें तीर्थंकर परमात्मा पार्श्वनाथ भगवान का निर्वाण कल्याणक है। भगवान पार्श्वनाथ को पुरुषादानी भी कहा जाता है। क्योंकि आपने 500 कल्याणको में भाग लिया था। 24 तीर्थंकरों में सबसे अधिक पुण्यशाली पार्श्वनाथ परमात्मा थे। भगवान पार्श्वनाथ परमात्मा के 108 नाम है। और 108 नाम के 108 तीर्थ भी है। धमतरी के श्री पार्श्वनाथ जिनालय इतवारी बाजार में भी परमात्मा पार्श्वनाथ मूलनायक परमात्मा के रूप में विराजमान है। इस जिनालय को 100 साल से अधिक हो गया है। इसलिए यह जिनालय भी तीर्थ स्वरूप है। परमात्मा का जिस दिन जन्म होता है उसी दिन से निर्वाण के लिए पुरुषार्थ प्रारंभ हो जाता है। परमात्मा ने अपने जीवन की परीक्षा पास कर ली। आज के दिन ही परमात्मा का निर्वाण हो गया। परमात्मा केवलज्ञान प्राप्त करते ही सभी मानसिक दुखों का नाश कर लेते है। और जैसे ही निर्वाण कल्याणक होता है वैसे ही शारिरिक दुखो का भी नाश हो जाता है। इसके बाद परमात्मा पुनः लौटकर इस नाशवान संसार में कभी नहीं आयेंगे। अर्थात परमात्मा जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो गए। परमात्मा के उचित पुरुषार्थ का फल निर्वाण रूपी पुरस्कार के रूप में मिलता है। सिद्ध बुद्ध होने वाला जीव इच्छा रहित हो जाता है। इच्छा ही दुख का कारण है। अर्थात इच्छा खत्म होते ही जीव सर्व दुखो से मुक्त हो जाता है। जब तक शरीर है तब तक रोग है। क्योंकि शरीर में ही रोग होता है। आत्मा तो निरोगी है। निर्वाण ही आत्मा का वास्तविक स्वरूप है। निर्वाण पाने वाला जीव अखंड और अनंत सुख और आनंद को प्राप्त कर लेता है।

जीवन 3 प्रकार से जी सकते है। पहला है निर्वाह – कुछ जीव जीवन का केवल निर्वाह करना चाहते है। अर्थात सांसारिक वस्तुओं की सम्पन्नता पाना चाहते है। और इसके लिए ही कार्य करते रहते है। दूसरा है निर्माण – कुछ जीव जीवन निर्माण करते है। अर्थात अपने जीवन में सद्गुणों को लाते है। अपना जीवन धर्ममय व्यतीत करते है। जीवन में आराधना साधना को स्थान देते है। तीसरा है जीवन का निर्वाण – कुछ जीव आत्म साधना करते हुए परमात्मा बन जाते है। जीवन से मुक्ति ही जीवन निर्वाण कहलाता है। भगवान श्री कृष्ण अपने भागवत गीता में जीवन निर्वाण का ही ज्ञान देते है। उन्होंने गीता के माध्यम से बताया कि शरीर नाशवान है ये बदलते रहता है। आत्मा तो अजर अमर है। आत्मा को न अग्नि जला सकती है न जल डूबा सकती है। अर्थात आत्मा शाश्वत है। जिस प्रकार हम कपड़े बदलते है उसी प्रकार आत्मा भी शरीर बदलते रहती है। इसलिए शरीर के जाने का शोक कभी नहीं करना चाहिए। बल्कि आत्मा के विकास का प्रयास करना चाहिए। क्योंकि आत्मा का विकास करने वाला ही अपनी आत्मा का निर्वाण कर सकता है। हम जीवन भर सुखी होने का प्रयास करते है। लेकिन कभी मोह तो कभी द्वेष रूपी दुख हमे सुखी नहीं होने देता। परमात्मा कहते है जिस प्रकार किसी स्थान पर अंधकार या प्रकाश दोनों में एक ही रह सकता है उसी प्रकार सुख और दुख दोनों में से एक ही रह सकता है। अगर जीवन में सुखी होना हो तो कषाय को छोड़ना होगा। उत्तराध्ययन सूत्र का चौथा अध्याय है असंस्करित। इसका अर्थ है जो अपरिवर्तित है। बीता हुआ समय वापस नहीं आता। अर्थात इसे बदला नहीं जा सकता। अर्थात समय असंस्करित है। व्यवस्थित जीवन जीने वाले वाला ही जीवन की परीक्षा में सफल हो सकता है। जीवन में पाप का उदय होने पर अर्थ और भोग का संग्रह भी कोई काम नहीं आता। जाते हुए जीवन को देखकर विचार करना है कि हमारा पुरुषार्थ इस प्रकार हो कि जीवन सफल हो जाए अर्थात आत्मा सिद्ध बुद्ध मुक्त हो जाए। दूसरों की कार्य प्रणाली को देखकर वैसा ही करने की इच्छा होती है। इसलिए हमें हमेशा पुण्य कार्य करने वाले को देखकर उसकी कार्यप्रणाली को अपनाने का प्रयास करना चाहिए। परिग्रह रखना वास्तव में कमजोरी है। परमात्मा कहते है जिसके जीवन में जितना अधिक परिग्रह होता है वो उतना अधिक कमजोर होता है। परिग्रह पाने के लिए जीवन में पाप करते है परिणाम स्वरूप ये हमें डुबाती है अर्थात दुर्गति का करना बनता है। हम जीवन में सुविधा बढ़ाकर सुख पाना चाहते है। वास्तव में सुविधा परिग्रह है। परिग्रह ही दुख है। जबकि ज्ञानियों का कहना है हमे जीवन में परिग्रह को छोड़कर संतोष को लाने का प्रयास करना चाहिए। हम जीवन में जितना परिग्रह करते है उतना तो भोग भी नहीं पाते है। परिग्रह जीवन में इच्छाओं को बढ़ाता है। इच्छा के कारण जीवन में तनाव बढ़ता है। इसलिए परिग्रह से दूर होने का प्रयास करना चाहिए।