
माटी पुत्र मुख्य्मंत्री बघेल जी को पोला पर्व के लिए महाराष्ट्र से विशेष मंगवाए बैलजोड़ी सजावट का उपहार भेंट किया आंनद पवार ने
धमतरी | बैलों के समर्पण के प्रति आदर भाव अर्पित करने का प्रमुख पर्व है पोला, दुधारू गायों और बछिया को सब रखते हैं, लेकिन आधुनिकीकरण के चलते छोटे बछड़े को बैल बनने के पहले ही बेच दिया जाता है । इसी गोवंश को बचाने छत्तीसगढ के मुख्य्मंत्री माननीय श्री भुपेश बघेल जी की सरकार गोठानों में समुचित व्यवस्था कराकर और गोबर गोमूत्र खरीदी प्रारंभ कर गोवंश को कटने से बचाने एक महती पहल की है, और पोला पर्व भी निवास में धूमधाम से मनाकर खेत किसान, गोधन की एक दुसरे पर निर्भरता और सहकार की भावना को जनमानस में पुनर्जीवित कर परंपरा को विस्मृत होने से बचाने का कार्य कर रही है, बैलों के गले में जब घुंघरू जीवन का राग सुनाते हैं , ग़म कोस दूर हो जाता है खुशियों के कंवल मुस्काते हैं|
बैल किसान का सच्चा मित्र होता है बैल को किसान का परम मित्र कहा जाता हैं। यह एक पालतू जानवर होने के साथ ही साथ खेत मे जुताई, माल ढुवाई तथा सवारी के प्रयोजन हेतु काम मे लिया जाता था। इन वर्षों में बैलों के उपयोग में काफी कमी देखी गईं हैं। हालांकि भारत के कई गांवों में आज भी बैलगाड़ी देखी जा सकती हैं। कई शहरों में भी छोटे छोटे कामों के लिए बैलगाड़ी से माल ढुवाई आदि काम होता है।
आधुनिक समय मे उन्नत कृषि यंत्रों के आविष्कार के कारण परम्परागत कृषि साधनों का उपयोग निरन्तर घटता जा रहा है। खर्च के लिहाज से बैल का कृषि में उपयोग बेहद अल्प खर्च में होता था। हरे सूखे चारे को खाकर वह किसान के हर काम मे पूरा सहयोग करता हैं। गाय, बैल आदि के गोबर से भूमि के उपजाऊपन में मदद मिलती हैं। अच्छी फसल की पैदावार में बैल की जैविक खाद सहायक सिद्ध हो रही है।