आचार्य सम्राट शुभ जन्मोत्सव पर देवेन्द्र कोठारी ने दी मासखामण तप की भेंट

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धमतरी | वर्धमान स्थानकवासी जैन संघ धमतरी के तत्वावधान में जयगच्छीय साध्वी डॉ बिन्दुप्रभा और हेमप्रभा के सान्निध्य में जयगच्छीय ग्यारहवें पट्टधर आचार्य सम्राट शुभचंद्र की 84 वाँ जन्मोत्सव एकासन दिवस के रुप में मनाया गया। गुरु के जन्म दिवस पर खाँगटा निवासी राजीम प्रवासी उगमराज कोठारी के सुपुत्र देवेन्द्र कोठारी ने 30 उपवास (मासखामण) की तपस्या गुरु चरणों में भेंट की। गुरु जन्मोत्सव सभा को संबोधित करते हुए साध्वी बिन्दुप्रभा ने कहा कि गुरु की महिमा का मैं, कैसे करूं बखान,गुरु से ही तो किया है, ये सब अर्जित ज्ञान।ऐसा कोई कागज़ नहीं,जिसमे वो शब्द समाएं।ऐसी कोई स्याही नहीं ,जिससे सारे गुरू गुण लिखे जाएं। साध्वीश्री ने कहा कि आचार्यश्री अनंत गुणों की खान थे।

आचार्य श्री सरलता के महास्त्रोत, प्रशांतचेत्ता, मृदुभाषी, सरलमना, उदारवादी, समन्वय प्रेमी, संघ सुमेरू आदि अनेक अलंकरणों से अलंकृत थे। आपकी सरलता की सुवास तो सुदूर प्रदेशों में भी प्रसारित थी। आचार्य सम्राट का जीवन सरलता, सहजता, सौम्यता का त्रिवेणी संगम था। आपके जीवन से हमें यह शिक्षा लेते हुए सरल सहज जीवन जीना चाहिए। आचार्य सम्राट की खाँगटा ग्राम पर अनंत कृपा दृष्टि रही थी और उसी कृपा दृष्टि से यहाँ छतीसगढ़ की धरा के राजिम में रहने वाले भाई देवेन्द्र ने मासखामण के तप की भेंट कर गुरु के प्रति अपनी कृतज्ञता दी। धमतरीवासियों ने सामूहिक एकासना करके गुरु के गुणगान किये। चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष अविनाश चौरड़िया ने बताया कि तपस्यार्थी भाई का स्वागत शाल ,माला ,साफा, 10 ग्राम चाँदी का सिक्का, अभिनंदन पत्र, स्मृति चिन्ह देकर स्थानकवासी जैन संघ द्वारा अभिनंदन किया गया। इस अवसर पर रायपुर, दुर्ग, खाँगटा, किशनगंज, दुर्ग, भोपालगढ़, जोधपुर, राजिम, फिंगेश्वर आदि अनेक क्षेत्रों से श्रावक-श्राविकाओं का आगमन हुआ। आचार्य सम्राट शुभचंद्र की 84 वीं जन्म जयन्ती पर कमल बोहरा परिवार की तरफ से सामूहिक एकासन दिवस का आयोजन किया गया जिसमें सब ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। आज की धर्मसभा में हेमराज, पदमचंद, उगमराज, कमल कोठारी, नेमीचंद छाजेड़, मदनलाल चौरड़िया, बसंतचंद ओस्तवाल, दिनेश लोढ़ा, निर्मल चौपड़ा, स्वरुपचंद बैद आदि अनेक श्रद्धालुगण उपस्थित थे। मंच संचालन वंदना चौरड़िया ने किया। चातुर्मास के प्रारंभ से ही दोपहर में नवकार महामंत्र जाप का अनुष्ठान गतिमान है।

तपस्या से आत्मा कुंदन की तरह चमकती
तपस्या करना कोई सरल व सहज काम नही, बहुत ही मुश्किल और कठिन काम है। जिस तरह सोना आग की भट्टी में रखकर वह कुंदन बनकर चमक कर अपनी आभा और प्रभा से सबको अपनी ओर आकर्षित करता है ,उसी प्रकार व्यक्ति जीवन के अंदर तपस्या की अग्नि में तप कर अपने व्यक्तित्व को चमत्कृत व्यक्तित्व के रुप में परिवर्तित कर लेता है ।जिससे आत्मा कुंदन की भाँति चमकना प्रारंभ कर देती है। तपस्या वहीं कर सकता है जिसमें मन पर अंकुश रखने की क्षमता हो।