साधु संत स्वयं कष्ट सहकर दूसरों को सुख शांति देते है -प. पू. मधु स्मिता श्री जी म. सा.

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मां का प्रेम नि:स्वार्थ होता है उसे पैसो व संसाधनों से तौला नहीं जा सकता – प. पू. सुमित्रा श्री जी म. सा.

रविवार को स्माईल प्लीज विषय पर दिया जायेगा विशेष प्रवचन

धमतरी । चातुर्मास के तहत इतवारी बाजार स्थित पार्श्वनाथ जिनालय में प्रवचन जारी है। जिसके तहत प. पू. मधु स्मिता श्री जी म. सा. ने कहा कि अलाभ परिश्रम से जीवन को विकृति से संस्कृति में लाया जा सकता है। प्रतिकूलता में भी प्रसन्नता महसूस कर सकते है। जिस प्रकार मेहंदी को तोड़कर पीसकर बहने हाथ में सजाती है। अपना अस्तित्व खोने के बाद भी मेहंदी दूसरों के हाथो को सजाती है। इसी प्रकार साधु संतो का जीवन ऐसा होता है जो स्वयं कष्ट सहकर दूसरों को सुख शांति देते है। संतो का जीवन दूसरो के जीवन को सुधारने के लिए सफल रहता है। भगवान महावीर कहते है कि जीवन में कोई भी परिस्थिति आए जाये हमे संभाल कर आगे बढऩा है इससे जीवन सुधर जाएगा। तीन प्रकार मानव होते है। पहला हीन मानव यह हमेशा भयभीत रहता है। हर काम करने से घबराता है।

इसलिए कोई भी कार्य प्रांरंभ नहीं कर पाता। दूसरा मध्यम मानव यह जरा भी प्रतिकूलता आने पर हताश होकर काम छोड़ देता है। तीसरा उच्चकोटि मानव यह पूरे उत्साह के साथ कार्य प्रारंभ करते है। और किसी भी प्रकार की प्रतिकूलता आने पर बिना घबराये आगे बढ़ते है और कामयाबी के चरम पर पहुंचते है। यदि इसी प्रकार उच्चता का विकास कर सके तो जीवन में उच्चता आती है। व्यक्ति जब लगातार अभ्यास करता है तो मुर्ख व विद्रोही को झुकाने में सफल होता है। लेकिन उसे प्रताडि़त किया जाये तो यह झुकने को तैयार नहीं होता। साधक के जीवन में अनुकूलता व प्रतिकूलता दोनो आती है। हमे सम्भाव रखना है। सोचना है यदि हमे आज नहीं मिला तो आगे जरुर मिलेगा। प. पू. सुमित्रा श्री जी म. सा. ने कहा कि आत्मा के शक्ति का चिंतन किया जाये तो स्पष्ट होता है कि आत्मा में जो शक्ति है वह दुनिया के किसी वस्तु में नहीं है। प्रेम और प्यार में बहुत अंतर है। प्रेम शुद्ध आत्मा का होता है। समस्त जीवों के प्रति प्रेम होता है, प्रेम निस्वार्थ होता है। प्रेम में परमात्मा का अनुभव किया जा सकता है, लेकिन प्यार संसारिक होता है। एक दूसरे के प्रति होता है। प्रेम को मां और पुत्र के संबंधो से समझा जा सकता है। मां का प्रेम नि:स्वार्थ होता है उसे पैसो व संसाधनों से तौला नहीं जा सकता। प्रेम सागर जैसा विस्तृत होता है। प्रेम भरपूर हो तो सारी पीड़ाये समाप्त हो जाता है। भगवान महावीर के मन में बैरी के प्रति भी प्रेम था। परमात्मा के हृदय में सभी के प्रति प्रेम भाव होता है। जिनका ध्यान धर्म में होता है वह धर्म की ही बात सोचता है उनके मन में अन्य बात नहीं आती । किसी झगड़े व विवाद को खत्म करना है तो स्वयं को शांत रह जाना चाहिए। चातुर्मास के तहत तप तपस्याओं का दौर जारी है। तेला की लड़ी में गोल्डी राखेचा का तेला प्रारंभ हुआ। कल सुबह 9 से 11 बजे तक स्माईल प्लीज विषय पर विशेष प्रवचन दिया जायेगा। प्रवचन का श्रवण करने बड़ी संख्या में जैन समाजजन उपस्थित रहे |