“मानव जीवन दुर्लभ है, इसे व्यर्थ न जाने दें – आत्मा का राग ही सच्चा धर्म”

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धमतरी | परम पूज्य उपाध्याय प्रवर अध्यात्मयोगी महेंद्र सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवामनीषी स्वाध्याय प्रेमी मनीष सागर जी महाराज साहेब के सुशिष्य परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य योगवर्धन जी महाराज साहेब श्री पार्श्वनाथ जिनालय इतवारी बाजार धमतरी में विराजमान है। आज दिनांक 5 अगस्त 2025 को परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब ने प्रवचन के माध्यम से फरमाया कि हे चेतन हमे अपने प्रभु में ही रम जाना है तभी आत्मा का उद्धार हो सकता है। अब तक हम चारों गति में भटकते रहे इसीलिए संसार के अटके रहे। क्योंकि जीव अब तक धर्म को समझ नहीं पाया था। अब निज धर्म अर्थात आत्मा के धर्म को समझना है। और उसके लिए परमात्मा का आलंबन लेना है। अब मेरा भाग्य जगा है क्योंकि सच्चे देव मिले है जिनवाणी रूपी माता मिल है जिनके कारण मेरे नेत्र खुल गए है। बड़ी मुश्किल से न जाने कितने भव के बाद मानव भव और दुर्लभ जिनशासन मिला है। अब इसे व्यर्थ नहीं जाने देना है। अब आत्मा के प्रति राग प्राप्त करना है क्योंकि यही मेरा अपना है। मेरा अर्थात मेरी आत्मा का सपना भगवान बनने का था। अब उसे पाने का पुरुषार्थ करना है। अब प्रभु को पाकर खोना नहीं है। मै भी सिद्ध भगवान के साथ उनके जैसा ही हर्ष और आनंद के साथ रहूंगा। मुझे भी कोई पीड़ा नहीं होगी। अब मानव जन्म के रूप में अवसर आया है हमे प्रभु की मानना है। भेद ज्ञान अर्थात शरीर और आत्मा का भेद ज्ञान प्राप्त करना है ताकि इसके बाद और जन्ममरण न करना पड़े अर्थात संसार भ्रमण से मुक्ति मिल जाए। ज्ञानी कहते है हम संसार के कार्यों के लिए हमेशा चिंता करते है। भूख न लगे या भूख लगे और भोजन न मिले तो चिंता खाने की होती है। लेकिन क्या कभी ये चिंतन हुआ कि किसी जन्म में मैने किसी को भोजन से दूर किया हो जिसका अभी उदय हो रहा है। चिंता करते हुए जो आत्म चिंतन तक पहुंच जाता है उसका चित्त अर्थात मन परमात्मा बनने की ओर अग्रसर हो जाता है।
उत्तराध्ययन सूत्र के माध्यम से परमात्मा महावीर कहते है संसार का क्षेत्र पुण्य से चलता है। संसार में परिश्रम के पुरुषार्थ से ही पुण्य होता है। जीवन में पुरुषार्थ से मोक्ष मिलता है। हम सांसारिक कार्य के लिए परिश्रम करते है और धर्म कार्य को पुण्य के भरोसे छोड़ देते है। जबकि ज्ञानी कहते है धर्म के लिए पुरुषार्थ करते रहना चाहिए। अगर जीवन में पाप का उदय है तो परिश्रम करके भी कुछ प्राप्त नहीं कर सकते। जीवन में प्रमाद को दूर करके जो परिश्रम अर्थात पुरुषार्थ करता है वही परमात्मा बन सकता है। पूर्व भव के पुण्योदय से मानव जीवन मिला है। लेकिन अब इस जीवन में पुरुषार्थ नहीं करेंगे केवल पूर्व के पुण्य का भोग करते रहेंगे तो पता नहीं आने वाला भव कौन सा मिलेगा। हम इतिहास पुरुषों को उनके किसी न किसी विशेष कार्य के कारण याद करते है। अब विचार करना है कि ये दुनिया मुझे मेरे जाने के बाद मेरे किस कार्य के लिए याद करेगी अथवा याद करेगी भी या नहीं। पुण्य को बेचकर जो साधन,सामग्री प्राप्त करते है वो सब यहीं रह जाएगा। लेकिन संसार की साधन , सामग्री को प्राप्त करने के लिए जो पाप कमाते है वो साथ जाएगा। और यही पाप हमे दुर्गति की ओर ले जाता है। परमात्मा जीवन से प्रमाद को दूर करने का उपाय बताते हुए कहते है कि एक कल्याण मित्र बनाना चाहिए। साथ ही धर्म कार्य सतत करते रहना चाहिए। अध्यात्म को अपनाने के लिए सम्यक धारणा करना चाहिए। हमें जीवन में जिनवाणी को पहले सुनना है । फिर सुनकर चुनना है अर्थात उसका चिंतन मनन करना है। उसके बाद जीवन में उसे धारण करना है। यही सम्यक धारणा कहलाता है। अपने जीवन में संपति बढ़ाने के अनेक पुरुषार्थ करते है। लेकिन अब ऐसा पुरुषार्थ करना है जिससे अंत में समाधि मरण प्राप्त हो सके।