
महापुरुषो ने कष्ट सहन किया है, कष्टो ने उन्हें महानता प्रदान की है – प. पू. सुमित्रा श्री जी म. सा.
पूर्वी, भव्य, भवि राखेचा के 7 उपवास पर वंदना बाफना ने 35 तप करने का संकल्प लेकर किया तपस्वियों सम्मान
धमतरी | चातुर्मास के तहत इतवारी बाजार स्थित पार्श्वनाथ जिनालय में प्रवचन जारी है। जिसके तहत आज प. पू. मधु स्मिता श्री जी म. सा. ने कहा कि साधक का कर्तव्य है जिस लक्ष्य को लेकर चलते है उसे लेकर निरंतर आगे बढ़ते रहे तो लक्ष्य की प्राप्ति होती है। साधक का जीवन कठिनाईयों से भरा होता है। यदि साधक का मन आत्मा में होता है तो परीक्षा आने पर वह जीवन का परम लक्ष्य प्राप्त करता है। विकट स्थिति आने पर भी साधक का मन स्थिर होना चाहिए। इससे शरीर व आत्मा का भिन्नता का ज्ञान हो जाता है। जिससे साधक का चिंतन बदलता है। चिंतन परिवर्तित होता है तो वेदना महसूस नहीं होती। अलाभ परिश्रम के संबंध में बताते हुए उन्होने कहा कि जहां विपरीत स्थिति हो तो साधक को अच्छे लाभ नहीं मिलता तो यह सोचे कि आज नहीं कल अच्छे लाभ मिलेंगे। हमे अच्छा मौका नहीं मिलता है तो मन में खेद होता है लेकिन हमे दुगुणा उत्साह से आगे बढऩा चाहिए। भगवान महावीर स्वामी ने 2600 साल पूर्व यह नींव रखी है। यह नींव कभी ढह नहीं सकती। भगवान महावीर की वाणी परम सत्य है। वैज्ञानिक भी इसे सिद्ध कर रहे है। साधु साधना करते है तो कदम-कदम में कष्ट आते है। जो इन कष्टो से निकल जाते है वह लक्ष्य की प्राप्ति करते है। सहन शक्ति के फायदे,जीवन में परिश्रम किस प्रकार आता है और किस प्रकार इससे आगे बढऩा चाहिए भगवान महावीर स्वामी ने सूत्र के माध्यम से बताया है। महावीर स्वामी ने स्वयं साढ़े 12 वर्षो की साधना के बाद कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति की थी। प. पू. सुमित्रा श्री जी म. सा. ने कहा कि जब पत्थर छैनी हथोड़े की मार सहता है |
तो आकार लेता है वृक्ष की लकड़ी कुरूप होती है सुन्दर फर्नीचर तभी बनता है जब वह कटता है, छिलने को सहन करता है। संसार में चारो ओर कष्ट व दुख पाने वाली आत्मा, परमात्मा तब बनती है जब उसमें सहन की शक्ति आती है। विचार करे क्या हमारे भीतर कष्टो को सहने की शक्ति है। यदि यह शक्ति है तो आत्मा को सुन्दर स्वरुप प्राप्त होता है। भगवान से प्रेम करने वाले को भौतिक कष्ट झेलने पड़ते है। लेकिन कठिन रास्तो पर आगे बढ़कर ही मंजिल प्राप्त होती है। जितने महापुरुषो ने कष्ट सहन किया है उन कष्टो ने उन्हें महानता प्रदान की है। भगवान राम व श्री कृष्ण के जीवन में कष्ट नहीं आता तो उनका जीवन महान नहीं बनता। भगवान महावीर व पार्श्वनाथ के जीवन में भी दुखो, कष्टो के बाद सम्भाव आया। व समस्त प्राणियों के लिए आदर्श बना। प्रवचन के पश्चात पूर्वी पिता आलोक राखेचा, भव्य पिता अमित राखेचा, भवि पिता आलोक राखेचा के 7 उपवास पर उनका संघ द्वारा बहुमान किया गया। सम्मान के लिए तपों की बोली लगाई गई। जिसे वंदना बाफना ने 35 तप करने का संकल्प लेकर प्राप्त किया। उनके तप का क्रम जारी है .वहीं रायपुर से पधारे पुष्पा नवलखा का भी सम्मान संघ द्वारा किया गया। बता दे कि श्रीमती पुष्पा की बहु ने कुछ माह पूर्व ही दीक्षा ग्रहण किया है। प्रवचन का श्रवण करने बड़ी संख्या में जैन समाजजन उपस्थित रहे।