परमात्मा का अभिषेक करने से अपने अंदर का ताप बाहर आता है – परम पूज्य लयस्मिता जी म.सा.

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प्रवचन के बाद अट्ठाई तपस्या की तपस्वी कु. नव्या लूनिया का सम्मान श्री संघ की ओर से श्रीमती सरिता नाहर द्वारा किया गया

साथ ही 8 बच्चो द्वारा गोचरी पौषध का किया गया है

धमतरी | पार्श्वनाथ जिनालय में परम पूज्य लयस्मिता जी म.सा. ने अपने प्रवचन के माध्यम से कहा कि जम्बुस्वामी सुधर्मास्वामी से पूछ रहे है कि किसको वंदन है। तब सुधर्मास्वामी कहते है कि भगवान महावीर स्वामी को वंदन है। कोल्लाग सन्नीवेश में परमात्मा का समवशरण लगा है। परमात्मा की देशना में 4 प्रकार के देव, 4 प्रकार की देवी, साधु – साध्वी, श्रावक – श्राविका इस तरह कुल12 प्रकार के लोग आते है। श्रावको में आनंद श्रावक भी आए है। आनंद श्रावक 20 हजार सीढियां चढ़कर परमात्मा के समवशरण में आए है। यहां आकर प्रभु को वंदन करके देशना( प्रवचन) सुनने बैठ जाते है। परमात्मा ने अपनी देशना में श्रावको के कर्तव्य बताते हुए फरमाया की 3 प्रकार के कर्तव्य का पालन हर श्रावक को करना चाहिए। देव दर्शन – पूजन, गुरु वंदन और जिनवाणी श्रवण। विनय भाव पूर्वक वंदना करने से उच्च गोत्र का बंधन होता है। आनंद श्रावक के मन में परमात्मा के प्रति अनंत उत्साह था। इसीलिए परमात्मा के आने की समवशरण की बात सुनते ही देशना में पहुंच गए थे। हमारे मन में भी परमात्मा के प्रति अनंत उत्साह होना चाहिए। हमारा जन्म कहा होगा, मृत्यु कब होगा कैसे होगा ये हमारे हाथ में नही है। किंतु जन्म और मृत्यु में बीच का जो समय है जिसे हम जीवन कहते है वो हमारे हाथ में है, जीवन कैसे जीना है, जीवन को कैसे बनाना है। परमात्मा का अभिषेक करने से अपने अंदर का ताप बाहर आता है। परमात्मा अपनी देशना के माध्यम से फरमाते है कि जीवन कैसे जीना है। जैसे एक घड़ा बनते ही बाजार में विक्रय के लिए नही आ जाता। बनने के बाद उसे पहले अग्नि की तपन सहना करना पड़ता है तपन सहन कर पक्का होना पड़ता है तब वह घड़ा विक्रय योग्य अर्थात मूल्यवान बनता है। उसी प्रकार एक श्रावक को भी परिपक्व होकर होना चाहिए। जिस प्रकार एक कच्चा आम का मूल्य कम होता है किंतु वही आम जब पाक जाता है तो उसके रंग, रूप में परिवर्तन आ जाता है, उसकी सुगंध बढ़ जाती है। उसी प्रकार एक परिपक्व श्रावक का आचार, व्यवहार और क्रिया भी उसी के अनुरूप बदल जाता है। जिनवाणी ही हमारी जिंदगी को सुधार सकती है। जीवन में दुख हमे मजबूत बनाने आता है।

परम पूज्य भव्योदया श्री जी म.सा. ने अपने प्रवचन में कहा कि हम जैसी करनी करेंगे वैसा ही फल मिलेगा। अगर हमारी मंजिल छत है तो हमे एक एक सीढ़ी चढ़कर छत पर पहुंचना होगा, उसी प्रकार मोक्ष में जाने की 14 सीढ़ी है। जैसे तेज के बिना सूर्य किसी काम का नही होता, सुगंध के बिना पुष्प का कोई महत्व नहीं है, शक्कर के बिना मिठाई का कोई मूल्य नहीं है और सेल के बिना घड़ी का कोई मतलब नहीं है उसी प्रकार परमात्मा की वाणी के बिना एक श्रावक का कोई महत्व नहीं है। जैसे डॉक्टर की दवाई लेने से और उसके बताए अनुसार परहेज रखने से पुरानी से पुरानी बीमारी भी दूर हो सकती है उसी प्रकार परमात्मा रूपी डॉक्टर की दवाई रूपी सामायिक करने से और कर्तव्य रूपी परहेज रखने से जन्मोजन्म की भव भ्रमण रूपी बीमारी दूर हो सकती है। 48 मिनट के एक सामायिक में शेष 23घंटे के पाप को तोड़ने की क्षमता है। श्रावक में नौ अलंकारों में दूसरा अलंकार है प्रतिक्रमण। प्रतिक्रमण के छः आवश्यक कहे जाते है। जिसमे पहला आवश्यक है सामायिक। श्रद्धा के बिना कोई भी क्रिया कभी फल नही देता। जैसे शून्य का तब तक कोई मूल्य नहीं है जब तक उसके आगे कोई अंक न लगे। शून्य के आगे अंक लगते ही प्रत्येक शून्य का महत्व 10 गुना बढ़ जाता है। जैसे की परमात्मा के प्रति श्रद्धा आने पर हमारी क्रिया का महत्त्व बढ़ जाता है। जैसे एक नदी में मछली और भैसा दोनो है। मछली का जन्म और मृत्यु दोनो जल में ही होता है। अगर उसे जल से बाहर निकाल दिया जाए तो मछली तड़प तड़प कर मर जाता है तथा एक भैसा अपनी शरीर की तपन दूर करने के लिए जल में जाता है और तपन दूर होते ही जल से बाहर आ जाता है। वैसे ही हमारा संबंध परमात्मा से मछली की तरह होना चाहिए। दूसरा आवश्यक है चउवीसत्थो। अर्थात परमात्मा की स्तुति स्तवन करना। परमात्मा का स्तवन ऐसा होना चाहिए जिसमे परमात्मा के गुणों का चिंतन और हमारे कर्मों का लेखन हो, प्रवचन में भंवरलाल छाजेड़, लूणकरण गोलछा, जीवनलाल जी लोढ़ा, भंवरलाल बैद ,पारसमल गोलछा, राहुल सेठिया, संजय छाजेड़, शिशिर सेठिया, नीरज नाहर, कुशल चोपड़ा , श्रीमति किरण सेठिया, श्रीमती शकुन सराफ, श्रीमति सरिता नाहर, श्रीमती सुशीला बैद, श्रीमती श्रीमती संगीता गोलछा, श्रीमती सरिता लूनिया सहित बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित थे।