धर्म आराधना हमेशा मन से होनी चाहिए – श्री पूर्णानंद सागर सूरीश्वर जी म. सा.

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कर्मो के आवरण के कारण हम संसार में भटक रहे है – प. पू. सुमित्रा श्री जी म. सा.

धमतरी । चातुर्मास के तहत इतवारी बाजार स्थित पार्श्वनाथ जिनालय में प्रवचन जारी है। जिसके तहत आचार्य भगवंत परम पूज्य पूर्णानंद सागर सूरीश्वर जी म. सा. ने कहा कि हमे मानव जीवन मिला है। इस जीवन का सदुपयोग करें। हम धर्म आराधना करते है लेकिन विचार करें यह हम मन से करते है या दूसरों की देखादेखी नकल करते है। धर्म आराधना हमेशा मन से होनी चाहिए। मानव जीवन में हमे सोच विचार व तर्क करने की शक्ति मिली है। हम ज्यादातर नाकारात्मक ऊर्जा की ओर अक्ल लगाते है। यह सोचे जब हम एक अंगुली किसी पर उठा रहे तो बाकि अंगुलियों हमारी तरफ आ रही है। नकल के लिए भी अकल की आवश्यकता होती है। इस संबंध में उन्होने लघु कथा बताते हुए कहा कि एक नगर में एक कुम्भकार दंपत्ति रहता था जिनका बच्चा नहीं था ऐसे में उन्होने एक गधे के बच्चें को अपना पुत्र मानकर उसे रायसिंग नाम दिया। और प्यार, दुलार के साथ ही भरपूर ख्याल रखा लेकिन कुछ साल बाद गधे की मृत्यु हो गई।

मृत्यु से दुखी कुम्भकार ने सिर मुंडन कराया। इसके पश्चात जब अपने सेठ जी के पास पहुंचा तो उन्होने पूछा कि किसकी मृत्यु हो गई तो कुम्भकार ने कहा रायसिंग की मृत्यु हो गई। सेठ को लगा नगर के बड़े आदमी की मृत्यु हो गई। इसलिए उन्होने भी मुंडन कराया। सेठ, दूसरे बड़े सेठ के पास पहुंचा तो बड़े सेठ ने पूछा किसकी मृत्यु हो गई तो कहा कि रायसिंग की मृत्यु हो गई। तो बड़े सेठ ने सोचा किसी बड़े व्यक्ति की मृत्यु हुई है उसने भी मुंडन कराया। कोतवाल ने बड़े सेठ से पूछा और खुद भी मुंडन कराया। कोतवाल जब नगर के मंत्री के पास पहुंचा तो मंत्री ने पूछा तो कोतवाल ने कहा रायसिंग जी की मृत्यु हो गई है। मंत्री को लगा कोई बहुत बड़े व्यक्ति की मृत्यु हुई है उसने भी मुंडन कराया। मंत्री महामंत्री के पास पहुंचा तो बताया कि रायसिंग जी साहब की मृत्यु हुई है तो महामंत्री ने भी मुंडन कराया। महामंत्री की मुंडन अवस्था को देख राजा पूछा तो राजा को भी लगा की कोई बहुत बड़े व्यक्ति की मृत्यु हुई है। इसलिए उसने भी मुंडन कराया। जब राजा महल पहुंचा तो रानी ने पूछा ने किसकी मृत्यु हुई है तो बताया कि रायसिंग जी साहब की मृत्यु हुई है। लेकिन कौन है उसे भी नहीं पता। रानी को शंका हुई उसने जब महामंत्री, मंत्री, कोतवाल, बड़े सेठ, सेठ, फिर उसके माध्यम से कुम्भकार को बुलाया तो पता चला की गधे की बच्चें की मृत्यु हुई है। इसलिए नकल के लिए अक्ल की आवश्यकता होती है। प. पू. सुमित्रा श्री जी म. सा. ने कहा कि जहां राग है वहां द्वेष है राग बहुत खतरनाक है। जहा राग ज्यादा होता है वहां द्वेष भी ज्यादा होता है। परमात्मा का राग कभी नहीं बदलता। कभी द्वेष नहीं बनता, इसलिए हमेशा उन्नति करता है। तप, आराधना से संसार को झुकाया जा सकता है। संसार से लगाव नहीं होना चाहिए। हमारी आत्मा प्रभु की आत्मा के सामान ही है, लेकिन मे संसार में भटक रहे है क्योंकि कर्मो का आवरण है। इसे हटाना है माता-पिता देवतुल्य है। देवताओं में सबसे बड़े देव की परीक्षा हुई तो भगवान गणेश ने माता-पिता के तीन फेरे लगाकर इस बात को सिद्ध किया। युग पिता मनोज कुमार डागा के 6 उपवास, पूरब पिता रमेश चंद गोलछा के 4 उपवास पूरे हुए। प्रवचन का श्रवण करने बड़ी संख्या में जैन समाजजन उपस्थित रहे।