
धमतरी । त्रिदिवसीय भव्य संगीतमय आध्यात्मिक श्रीमद रामचरित मानस मेला प्रतियोगिता मानस मंच परिसर नवगांव कंडेल के द्वारा आयोजित किया गया जिसके
समापन समारोह के मुख्यातिथि श्री आनंद पवार जी
अध्यक्षता श्री मोहित साहू जी विशिष्ट अतिथि दीपक सोनकर अधिवक्ता गणेश साहु जी ,गणराज सिन्हा सरपंच ,श्रीमती बसन्ती साहू उप सरपंच,श्री रेवा राम साहू,जे आर साहू,ए आर सिन्ह मुख्य सलाहकार,श्री जीवन धुरु,उत्तम विश्वकर्मा,जगदीश साहू,पुनीत राम साहू,दीपक साहू,मानी राम साहू,भागी राम साहू,लक्ष्मण यादव,श्री मति चंद्रिका साहू,श्री मति केकती साहू जी उपस्थित हो रामरस पान किए।
श्री पवार ने कहा कि *स्त्री के प्रति अन्याय का प्रतिकार करने के कारण जटायु मोक्ष को प्राप्त हुवे:
वहीं पितामह भीष्म अन्याय होता देख कुछ नहीं का सकने के कारण ईच्छा मृत्यु के वरदान के बाद भी बाण सैया पर कष्ट पाते रहे ,,
अबिरल भगति मांगी बर गिद्ध गयऊ हरिधाम।
तेहि की क्रिया जथोचित निज कर किन्हीं राम।।
जब मारीच की मदद से रावण सीता मैया का हरण कर अपने पुष्पक विमान से उन्हें लंका ले जा रहा था तब उनकी वेदनापूर्ण पुकार सुन गिद्धराज जटायु उन्हें बचाने के लिए तत्पर हो गया और वायु वेग से रावण की ओर उड़ चला ।
जटायु ने अपनी पूरी शक्ति से रावण पर आक्रमण किया और उसे नीचे गिरा दिया. पर अगले ही क्षण रावण ने अपनी कटार से जटायु के पंख काट दिए और पुनः सीताजी को लंका की ओर ले उड़ चला.
उधर जब राम-लक्षमण को सीता जी आश्रम में नहीं मिलीं तो वे फ़ौरन उन्हें ढूँढने निकले. मार्ग में उन्हें घायल अवस्था में जटायु मिला. उसने सिर्फ भगवान् के दर्शन करने के लिए अपने प्राणों को रोक रखा था.
श्रीराम ने रक्त में डूबे जटायु के सिर पर अपना हाथ फेरा. उनका दर्शन व स्पर्श पा कर जटायु की पीड़ा जाती रही और वह बोला, “हे नाथ! लंकापति रावण ने मेरी ये दशा की है. उसने सीता मैया का हरण कर दक्षिण दिशा की ओर रुख किया है… बस यही सूचना देने के लिए मैं अभी तक जीवित था. कृपया मुझे यह शरीर छोड़ने की आज्ञा दीजिये.”
भगवान् राम द्रवित होते हुए बोले-
“हे तात! अपने परहित में अपने तन का त्याग किया है, निश्चित ही आपको मेरे परमधाम की प्राप्ति होगी.”
और तत्काल ही जटायु चतुर्भुज रूप धारण कर भगवान् की स्तुति करते हुए परमधाम को चले गये ।