गुरु के प्रति प्रबल समर्पण व् आस्था का भाव होना चाहिए-प. पू. मधु स्मिता श्री जी म. सा.

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दुसरो की निंदा करने से बचे निंदा से आत्मा अपवित्र हो जाती है-प. पू. सुमित्रा श्री जी म. सा.

चातुर्मास के तहत इतवारी बाजार स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय में प्रवचन जारी

धमतरी । चातुर्मास के तहत इतवारी बाजार स्थित पार्श्वनाथ जिनालय में प्रवचन जारी है। जिसके तहत आज प. पू. मधु स्मिता श्री जी म. सा. ने कहा कि जिस प्रकार कुम्भकार मिटटी को गीला कर नम्र कर एक नया आकर दे कर उसे तपा कर मूर्त रूप देता है उसी प्रकार गुरु भी शिष्य को आकर दे कर चरम लक्ष्य को पाने लायक बनाता है.व्यक्ति जब सहन करने को तैयार हो जाता है तो उसके जीवन का उत्थान हो जाता है. आत्मा का दमन करना कठिन है यदि दमन करना प्रारम्भ कर दे तो जीवन सफल हो सकता है | गुरु के प्रति प्रबल समर्पण व् आस्था का भाव होना चाहिए. ह्रदय में शुद्धता है तो किसी के वचन की परवाह नहीं करते हुए सामयिक आध्यात्म में जुड़ जातें है इससे मनुष्य अपने भीतर चिंतन करता है तो कैवल्य का दर्शन होता है और जीवन का विकास होता चला जायेगा.चिंतन करना है की आत्मा को किस दिशा में ले जाना है |

जिस प्रकार अमृत अमरत्व को प्रदान करता है लेकिन विधि पूर्वक उपयोग नहीं करने पर घातक भी हो सकता है| उसी प्रकार विधि पूर्वक कार्य विधान से जीवन ऊँचा उठता है विद्या को विधि के साथ ग्रहण किया जाये तो उन्नति लाता है और सही तरह से ग्रहण न किया जाये तो पतन का कारण बनता है | पू. सुमित्रा श्री जी म. सा. ने कहा की संसार में सुख सामग्रियों,वस्तु में नहीं है बल्कि मन में है महावीर स्वामी ने कहा है की मन को साध ले तो सब कुछ संभल जायेगा सम्यक ज्ञान का बोध होना चाहिये इससे भ्रम टूटेगा तब धर्म का प्रवेश होगा .धर्म का आगमन जीवन का उत्थान करेगा.मूल कर्म धर्म है.आज घर घर में मनमुटाव है चिंतन करना है की कैसे आत्मा को सुधरे.दुःख देने वाला घातक करने वाला मोहनी कर्म है | इसे तोड़ने के लिए मन पर नियंत्रण जरुरी है|महापुरुष मोहनी कर्म से परे होते हैं| हम मोहनी कर्म में डूबे रहते हैं.अपना चिंतन करे तभी ज्ञान की प्राप्ति होगी.दुसरो की निंदा करने से बचे निंदा से आत्मा अपवित्र हो जाती है| प्रवचन का श्रवण करने बड़ी संख्या में जैन समाजजन उपस्थित रहे।