
शास्त्र में यंत्र, तंत्र, मंत्र साधना की शक्ति होती है – प. पू. सुमित्रा श्री जी म. सा.
धमतरी। चातुर्मास के तहत इतवारी बाजार स्थित पार्श्वनाथ जिनालय में प्रवचन जारी है। जिसके तहत प. पू. मधु स्मिता श्री जी म. सा. ने कहा कि संतो के सानिध्य में जाने से हमेशा लाभ मिलता है। संसारी व सयंमी में अंतर होता है जो कष्ट को दुख मानकर दुखी होता है वह संसारी होता है जो कष्टो को कर्मो की निर्जला मानते है, निरतंर इसकी प्रक्रिया सहते है वह संयमी होता है। जब साधक परिश्रम पर विजय पाता है तो संयम की ओर बढ़ता है। साधु,संयम की आराधना का श्रृंगार करता है और गृहस्थ का श्रृंगार संसारिक होता है। साधु के वस्त्र मलीन हो सकते है लेकिन साधु का मन मलीन नही होता। श्री कृष्ण जब मटकी फोड़ते थे तो वह पापो की मटकी फोड़ते थे अर्थात परमात्मा की नजर जिस पर जाती है उसका कल्याण हो जाता है। जन्माष्टमी पर मटकी फोडऩा पापो का मटकी फोडऩे का प्रतीक है। जहां हृदय समर्पित होता है, भक्ति होती है, मन भगवान में झुकता है, भगवान स्वयं खीचे चले आते है।
श्रद्धा, समर्पण, आस्था जीवन में जरुरी है। श्रीकृष्ण का जीवन अभिनंदनीय, वंदनीय व आदर्श है। गीता के उपदेशो को जीवन में ग्रहण कर ले सब कुछ पाया जा सकता है। प. पू. सुमित्रा श्री जी म. सा. ने कहा कि परमात्मा ने बारह महीने में 12 पर्व बताया है, भादो महीने का पर्व की दृष्टि से बड़ महत्व है। पर्यूषण पर्व भादो महीने में शुरु होने वाला है यह पर्व आत्मा की शुद्धि का पर्व है। इस पर्व के माध्यम से धर्म, आराधना से लोग जुड़ते है। आत्मा को जागृत किया जा सकता है। सख्तशील का स्वामी ही धर्म स्वीकार कर शुद्ध धर्म कर सकता है। संतो का सानिध्य मिला है लेकिन उपेक्षा का भाव आता है तो हम धर्म की ओर नहीं बढ़ सकते। शुद्ध वातावरण मन को शुद्ध करता है। पर्यूषण पर्व आत्मा को शुद्ध करने का पर्व है। शास्त्र में यंत्र, तंत्र, मंत्र साधना की शक्ति होती है। अक्षयनिधि तप,पर्यूषण पर्व पर आत्म भाव को समझने का प्रयास करें। जितनी शक्ति हो कम से कम उतनी तप, आराधना सभी को करनी चाहिए। प्रवचन उपरांत आज युग पिता मनोज कुमार डागा के 9 उपवास पूरे होने पर लूनकरण गोलछा, चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष लक्ष्मीलाल लुनिया, सचिव पूनम गोलछा द्वारा बहुमान किया गया। प्रवचन का श्रवण करने बड़ी संख्या में जैन समाजजन उपस्थित रहे।