कोरोना संकट के बीच सादगी से मना मोहर्रम का पर्व 

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धमतरी| नवासाएं रसूल हजरत इमाम हुसैन और उनके खानदान तथा साथियों की दीन-ए-हक में दी गई बेमिसाल कुर्बानी की याद में मुस्लिम भाईयों ने मोहर्रम का पर्व बड़े अकीदत से मनाया। शहर की जामा मस्जिद में तकरीर हुई, जिसमें दास्ताने करबला का बयान किया गया। इसके अलावा मुस्लिम संगठनों की ओर से शरबत और खिचड़ा तकसीम किया गया।
करबला की सरजमीं पर दुनियां की बेमिसाल कुर्बानी देने वाले हजरत इमाम हुसैन और अहैले बैत की शहादत को याद करते हुए मुस्लिम भाईयों ने मोहर्रम का पर्व बड़े अकीदत से मनाया। इस मौके पर सुबह बाद नमाज फजर जामा मस्जिद में कुरानख्वानी हुई। जगह-जगह लंगर और शरबत तकसीम किया गया।

उल्लेखनीय है कि इस बार कोरोना संकट को देखते हुए शहर के सिर्फ जामा मस्जिद में ही दस रोजा तकरीर हुई। जामा मस्जिद में अपनी नूरानी तकरीर में अल्लामा मुफ्ती गुलाम यजदानी ने नवासे-ए-रसूल हजरत इमाम हुसैन की शहादत का जिक्र करते हुए कहा कि वह इंसानियत और इंसाफ के पैरोकार थे। हक और सदाकत की राह में अपनी जान का नजराना पेश करने वालों का दुनिया और आखिरात में सिर बुलंद होता है। उन्होंने आगे कहा कि हजरत इमाम हुसैन की शहादत को हमेशा याद किया जाएगा। करबला के मैदान में हुई हक और बातिल की लड़ाई से इबरत लेते हुए अपने ईमान को मजबूत करें और सिराते मुस्तकीम पर चले। उन्होंने आगे कहा कि हमें हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद करते हुए गैरइस्लामी अकीदों और खुराफत से बचना चाहिए। उनका कहना था कि अहलेबेत से मुहम्मत ईमान का हिस्सा है।
हुसैनी किरदार अपनाएं
हनफिया मस्जिदा के मौलाना तौहिद रजा ने अपनी तकरीर में फरमाया कि दुनिया-ए-इस्लाम की तारीख में करबला की जंग बेमिसाल है। हजरत इमाम हुसैन ने दुश्मनाने यजीद के सामने समर्पण करने के बजाए खुदा के सामने अपने सर की कुर्बानी दे दी। अपने लख्ते जीगर अली असगर, अली अकबर, हजरत कासिम से लेकर अपने पूरे खानदान की कुर्बानी देकर उन्होंने अपने नाना के दीन की हिफाजत की। उन्होंने आगे कहा कि हुसैनी किरदार अपनाकर ही हम अपनी जिंदगी को पुरनूर कर सकते हैं।
घर-घर में हुई फातिया
मोहर्रम के मौके पर जामा मस्जिद में लंगर व शरबत का एहतमाम किया गया। गुलमाने मुस्तफा कमेटी, मुस्लिम युवा मंच, चिश्तियां ग्रुप, यंग मुस्लिम कमेटी और या हुसैन कमेटी समेत अन्य मुस्लिम संगठनों की ओर से भी शरबत, खीचड़ा तकसीम किया गया। इसके अलावा घर-घर में फातिया और कुरख्वानी का इंतजाम किया गया था।
दीन पर आंच आने नहीं दी
मदीना मस्जिद के पेश इमाम मौलाना तनवीर रजा ने फरमाया कि मोहर्रम महीने की दसवीं तारीख, जिसे यौमे आशूरा कहा जाता है, हजरत इमाम हुसैन की शहादत का दिन है। हक और इंसानियत का परचम उठाकर हजरत इमाम हुसैन ने दुनिया को बता दिया कि चाहे अपनी जान देना पड़े, लेकिन वे दीन पर आंच आने नहीं देंगे। उन्होंने आगे कहा कि आली मुकाम करबला में जंग जीतने नहीं बल्कि अपने आप को अल्लाह की राह में कुर्बान करने आए थे। इमाम हुसैन आज भी जिंदा हैं और यजीदियत जीतकर भी हार गई।