धमतरी | नागरिक सहकारी बैंक के अध्यक्ष हरमीत सिंह होरा ने कहा कि कृषि संशोधन बिल का मतलब है कि देश की आत्मा को पूंजीपतियों,कॉरपोरेट्स के हाथों गिरवी रखना। कृषि ,भारत की अर्थव्यवस्था की बुनियाद है। देश कीअर्थव्यवस्था की आत्मा है। कृषि का आधार धरती है और भारतीय संस्कृति में धरती को माता के नाम से संबोधित किया जाता है।कृषि प्रधान देश होने के कारण ही इसे भारत माता कहा जाता है।कृषि विशेषज्ञों ,अर्थ शास्त्रियों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं का यह मानना है कि यह बिल कृषक, कृषि और देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक व हानिकारक है। देश पूर्णतः आर्थिक गुलामी के दलदल में धंस जाएगा। इससे अमीर और गरीब के बीच की खाई बहुत बढ़ जाएगी।
किसानों को सीधे मौत के मुंह में धकेलने की खतरनाक साज़िश
हरमीत सिंह होरा ने आगे कहा कि तीन महत्वपूर्ण संशोधन किए जा रहे हैं । पहला शासकीय कृषि उपज मंडी को समाप्त कर खुले बाज़ार की व्यवस्था – किसान अपनी उपज को सीधे बाजार में बेचने के लिए स्वतंत्र होगा। जब किसान बिना किसी सुरक्षा कवच सीधे बाजार के हवाले होगा और सामने बड़े पूंजीपति और कॉरपोरेट्स घराने होंगे तो क्या किसान जो पहले से ही कर्ज़ के बोझ तले दबा है वह स्वयं को अपनी ज़मीन और कृषि को बचा पाने में सफल होगा? बड़े कॉरपोरेट्स घराने कब उन्हें निगल जाएंगे किसी को अहसास भी नहीं हो पाएगा। हमें अपने बुजुर्गों के ज्ञान , अनुभव की प्राचीन विरासत और और प्रकृति की शिक्षा से भी सीख लेनी चाहिए कि बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है।
दूसरा बिल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग- इसमें कोई भी कार्पोरेट किसानों से कांट्रेक्ट करके खेती कर पायेगा और विवाद की स्थिति में एसडीएम और कलेक्टर स्तर पर ही अन्तिम निपटारा होगा।अदालत या कोर्ट जाने का अधिकार नहीं होगा। क्या यह किसानों को सीधे मौत के मुंह में धकेलने की खतरनाक साज़िश नहीं है? सीधा सवाल है किसान जो नहीं चाह रहा है उसे जबरदस्ती देने की कोशिश क्यों की जा रही है?
तीसरा एसेंशियल कमोडिटी बिल –– इसमें सरकार अब यह बदलाव लाने जा रही है कि किसी भी अनाज को आवश्यक उत्पाद नहीं माना जायेगा। इसका मतलब है कि जमाखोरी अब गैर कानूनी नहीं रहेगी। कारोबारी अपने हिसाब से खाद्यान्न और दूसरे उत्पादों का भंडारण कर सकेंगे और दाम अधिक होने पर उसे बेच सकेंगे।
यह कैसा राजधर्म और राष्ट्र हित है ? –
यह कैसा कानून है कि किसानों से सुरक्षा कवच छीनकर पूंजीपतियों और कॉरपोरेट्स घरानों से खुले मुकाबले को किसानों के हित में बताया जा रहा है।
देश में लगभग 25 प्रतिशत आबादी अर्थात लगभग 37 करोड़ जनता गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करती है । “आवश्यक वस्तु अधिनियम” इसे तो गरीब एवं देश की आम जनता को काला बाज़ारियों से बचाने के लिए बनाया गया था। इसे हटाकर कैसे गरीब जनता का भला होगा ? इसे न तो अनपढ़ समझ पा रहा है और न ही विद्वान।यह वास्तव में हार्डवर्क और हावर्ड की समझ से भी बाहर है।ऐसी नीतियों का क्या फायदा जिसे केवल बनाने वाला समझे और जिसके लिए बताया जा रहा है वह डरे , घबराए और उसका अस्तित्व ही खतरे में दिखाई पड़े। यह कैसा राजधर्म और राष्ट्र हित है?
आखिर सरकार पर किसका दबाव है?
सबसे चिंतनीय और निंदाजनक यह है कि जो बिल में लिखा है उसे न बताकर जो बिल में लिखा ही नहीं है उसे सभाओं , अधिकृत शासकीय मंचो व उद्बोधनों और सोशल मीडिया में प्रचारित करना क्या यह उचित है ?। इससे सरकार की विश्वसनीयता पर सबसे बड़ा सवाल खड़ा होता है। सरकार का राजधर्म की जनता को विश्वास में लेकर राष्ट्रीय विमर्श कर पूर्ण सहमति बनाकर राष्ट्र हित में निर्णय ले। यह देश के लिए चिंता का विषय है कि आखिर सरकार पर किसका दबाव है?
लोकतंत्र और संविधान की मर्यादा के खिलाफ तथा देश की अस्मिता के लिए गंभीर खतरा
राज्यसभा में बिना मतदान किए भारी शोरगुल और हंगामे के बीच आनन- फानन में बिल को पास किया गया है । यह लोकतंत्र और संविधान की मर्यादा के खिलाफ तथा देश की अस्मिता के लिए गंभीर खतरा है? अभी देश गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। व्यापार धंधे चौपट हैं | बेरोजगारी भुखमरी,आत्महत्या, हिंसा , मंहगाई खतरनाक स्तर पर है। जीडीपी ऋणात्मक 23.9 पर पहुंचकर गंभीर चिंता उत्पन्न कर रही है |उस पर जीवन और मानवीय मूल्यों पर कोरोना महामारी का विकट संकट है । ऐसी विषम और जटिल परिस्थितियों में सरकार को बहुत संभलकर, सूझबूझ के साथ जनता ,सामाजिक संगठनों, विशेषज्ञों एवं राजनैतिक दलों के साथ बेहतर सामंजस्य और सहमति बनाकर राष्ट्र हित में काम करने और सही निर्णय लेने की जरूरत है।