
हमेशा अच्छे विचारों का आदान प्रदान करें – प. पू. सुमित्रा श्री जी म. सा.
धमतरी । चातुर्मास के तहत इतवारी बाजार स्थित पार्श्वनाथ जिनालय में प्रवचन जारी है। जिसके तहत आज प. पू. मधु स्मिता श्री जी म. सा. ने कहा कि व्यक्ति कर्म निर्जरा के माध्यम से आगे बढ़ता है कर्मनिष्ठ तप न हो तो आगे नहीं बढ़ता। शरीर और आत्मा अलग-अलग होते है फिर भी एक साथ रहते है यह प्रकृति की व्यवस्था है। आत्मा शाश्वत है, शरीर नश्वर है। जो व्यक्ति दोनो में अंतर जान लेता है वह स्थिर बनता है। प्रज्ञा परिश्रम धैर्यवान होता है। प्रज्ञा ज्ञान के बाद अहम नहीं आना चाहिए। अपने मन पर नियंत्रण करना जरुरी है। परिश्रम की स्थिति में मन को संभाल कर रखने की आवश्यकता है।
जहां विचार शुद्ध होता है वहां व्यक्ति स्वयं व दूसरों को उत्थान कर सकता है। ज्ञान, ज्ञानी की आराधना करना है कभी भी हमे इसकी विराधना नहीं करनी चाहिए। हमे दूसरों की क्षमता को देखकर ईर्ष्या होती है। मन को शुद्ध बनाने का प्रयास करें हममें श्रद्धा का आभाव है। जिनशासन के प्रति श्रद्धा होगी तो सम्यक दर्शन की प्राप्ति होगी। धर्म आराधना करने के बाद भी फल नहीं मिलता तो यह हमारे श्रद्धा की कमी है। श्रद्धा को स्थिर करने चिंतन करें। प. पू. सुमित्रा श्री जी म. सा. ने कहा कि मन, वचन, काया के माध्यम से तीनों लोको को बंधन को पार कर आत्म को प्राप्त कर सकते है। अच्छे विचारों का आदान प्रदान हमे करना चाहिए। अच्छे विचार दूसरों को दे, दूसरों से अच्छे विचार ले। विचारो में बहुत शक्ति होती है।
समस्त जीवो के उत्थान का कार्य कर सकती है। अशुद्ध विचारों का आदान प्रदान हम ज्यादा करते है निंदा, बुराई कर दूसरों को अशुद्ध विचार देते है। संसार में कई प्रकार के प्रदूषण है लेकिन मन में वैचारिक प्रदूषण हो तो विवाद लड़ाई व उलझन होता है। लोग उपर से बहुत सुन्दर व मीठा बोलते है लेकिन मन के अंदर कटुता होती है। दूसरों की बुराई कर हम दूसरों की हानि से ज्यादा अपनी हानि करते है। हममें विचार शुद्ध होगा तो सम्यक ज्ञान व दर्शन होगा। कल से पयूर्षण पर्व प्रारंभ हो रहा है यह आत्मा की शुद्धि का पर्व है। दुर्ग निवास श्रीमती पायल ओस्तवाल के 23 उपवास पर संघ द्वारा तपों की बोली लगाकर उनका बहुमान किया गया। जिस पर 11 उपवास की बोली श्रीमती सोनल गोलछा ने लगाकर बहुमान का सौभाग्य प्राप्त किया। प्रवचन का श्रवण करने बड़ी संख्या में जैन समाजजन उपस्थित रहे।